हिंदी में वाच्य परिवर्तन .. Hindi me vachya Parivartan

हिंदी में वाच्य परिवर्तन .. कैसे करते हैं.. इससे पूर्व जानते हैं कि वाच्य किसे कहते हैं… वाच्य का अर्थ होता है…. वाक्य के कथन का प्रकार । क्योंकि….एक ही वाक्य को कई प्रकार से बोला या कहा जा सकता है। जैसे… *बालिका लिखती है। बालिका के द्वारा लिखा जाता है। राम पढ़ता है । […]

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निपात किसे कहते हैं..

निपात किसे कहते हैं…निपात शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार हुई है….. नि(उपसर्ग )+ पत् (धातु )+घञ(प्रत्यय ) से बना है। इनका प्रयोग वाक्य में किसी बात पर विशेष बल देने के लिये किया जाता है। अनेक प्रकार के अर्थों में प्रयुक्त होने के कारण कुछ शब्द निपात कहे जाते हैं।ये शब्द भाव प्रधान नहीं होते

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संस्कृत-के-स्त्री-प्रत्यय..

संस्कृत-के-स्त्री-प्रत्यय..किसे कहते हैं.. परिभाषा..पुलिङ्ग् शब्दों को स्त्री लिङ्ग में परिवर्तित करने के लिये जिन प्रत्ययों क प्रयोग किया जाता है उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं। जैसे… अज् + टाप् > आ = अजा इस उदाहरण में अज पुलिङ्ग् शब्द है, जिसमे टाप् (आ )लग कर स्त्री लिंग शब्द बन गया है। संस्कृत-के-स्त्री-प्रत्यय कौन कौन से

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संज्ञा विधायक सूत्र…संस्कृत व्याकरण.

संज्ञा विधायक सूत्र..आचार्य पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रयत्न लाघव के लिये कई संज्ञा सूत्रों की रचना की है। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं.. संहिता संज्ञा .. सूत्र ” परः संनिकर्षः संहिता “ वर्णों की अत्यन्त समीपता अर्थात…व्यवधान रहित उच्चारण को संहिता कहते हैं। माहेश्वर सूत्र के लिये इसे पढ़े जैसे…सुधी + उपास्य में ई के

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अव्यय किसे कहते हैं..

अव्यय किसे कहते हैं…..अव्यय का शाब्दिक अर्थ है.. जो व्यय ना हो। अव्यय किसे कहते हैं. परिभाषा अव्यय वे शब्द हैं, जिनमें लिंग, विभक्ति या वचन के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है। सदा एक सा रहता है। इनका रूप नहीं बदलता है इस लिए इन्हें अविकारी शब्द कहा जाता है। जैसे.. जब , तब

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पदबंध किसे कहते हैं….

पदबंध का शाब्दिक अर्थ है पदों का बंधन। अर्थात अनेक पदों का समूह जो आपस में बंधे रहते हैं। ये वाक्य का भाग होते हैं। अर्थात वाक्यांश होते हैं। परन्तु चाहे जितने भी पद परस्पर संबद्ध हों, ये पूर्ण अर्थ नहीं देते हैं। पद किसे कहते हैं .. शब्द जब वाक्य में प्रयुक्त हो कर

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क्तवतु-प्रत्यय का अर्थ/ktvatu pratyay ka arth…

क्तवतु प्रत्यय भी एक भूत कालिक कृदन्त प्रत्यय है।यह प्रत्यय केवल कर्तृ वाच्य में प्रयोग किया जाता है। नोट…कर्तृ वाच्य में कर्ता में प्रथमा और कर्म (यदि हो तो) में द्वितीया होती है। *क्रिया के लिंग और वचन कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे.. १.बालकः हसितवान्। लड़का हंसा। २.बालकौ हसित्वन्तौ। दो

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क्त प्रत्यय संस्कृत व्याकरण .

भूत काल के कृत् प्रत्ययों में संस्कृत में मुख्यतःदो प्रत्यय हैं क्त तथा क्तवतु। क्त प्रत्यय भूत कालिक कृदन्त प्रत्यय है। क्त को निष्ठा कहते हैं ,जिसका संस्कृत व्याकरण में अर्थ होता है समाप्ति।अर्थात कार्य की समाप्ति। जैसे..तेन् पठितं । उसके द्वारा पढ़ा गया। अर्थात पढ़ने का कार्य समाप्त हो गया । जब हम भूत

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शानच् प्रत्यय…

शानच् प्रत्यय वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्यय है। यह प्रत्यय “होता हुआ” इस अर्थ में प्रयुक्त होता है, और आत्मनेपद धातुओं के साथ इसका प्रयोग होता है। शतृ और शानच् दोनो एक ही अर्थ में प्रयोग किये जाते हैं, परन्तु दोनों में यह अन्तर है, कि शतृ प्रत्यय परस्मैपद धातुओं के साथ और शानच् प्रत्यय आत्मनै

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शतृ प्रत्यय /shatri pratyay

शतृ प्रत्यय किसे कहते हैं,यह कैसे प्रयोग किया जाता है तथा किस अर्थ में किसके साथ प्रयोग किया जाता है, इस प्रत्यय के प्रयोग के नियम,यह सब् हम इस लेख के द्वारा जानेंगे… *.” शतृ ” एक वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्यय है। इसका प्रयोग परस्मैपद धातुओं के साथ होता है। *.कुछ धातुएं जो उभयपदी हैं,

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