ठक् प्रत्यय /Thak Pratyay

ठक् प्रत्यय एक तद्धित प्रत्यय है। यह प्रत्यय संज्ञा शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है। तस्य इदं, ततः आगतः , तस्य निवासः , तत्र भावः अर्थात.. उसका यह , उससे आया हुआ, उसमें विद्यमान या उसका भाव आदि, इस प्रकार का भाव देता है। *ठक् प्रत्यय का प्रयोग ‘संबन्धी ‘ अर्थ में भाववाचक संज्ञा बनाने […]

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Matup Pratyay/ मतुप् प्रत्यय

मतुप् प्रत्यय एक तद्धित प्रत्यय है.. जो ‘युक्त‘ अर्थ में या वाला अर्थ में संज्ञा व सर्वनाम शब्द के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे… सःबलवान् अस्ति। वह बलवान है अर्थात बल से युक्त है। हिन्दी भाषा में जो अर्थ वान, वाला, वाली आदि प्रत्ययों से प्रकट होता है, वही अर्थ मतुप् प्रत्यय से प्रकट

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अनीयर् प्रत्यय.परिचय/Aniyar Pratyaya

अनीयर् प्रत्यय वर्तमान कालिक प्रत्यय है।इस प्रत्यय का प्रयोग योग्यता अर्थ में तथा चहिए अर्थ में होता है। जैसे… योग्यता अर्थ में…. उसका कार्य प्रशंसनीय है ..अर्थात प्रशंसा के योग्य है। चहिए अर्थ में … तुम्हें पढ़ना चाहिए। इस प्रत्यय का प्रयोग प्रायः सभी धातुओं के साथ हो सकता है। इसका प्रयोग भी तव्यत प्रत्यय

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तव्यत प्रत्यय…परिचय तथा प्रयोग के नियम ..

तव्यत प्रत्यय का प्रयोग विधिलिङ्ग् लकार के अर्थ में होता है।तथा इसका प्रयोग कर्म वाच्य में होता है। चहिये के अर्थ में धातुओं का प्रयोग करने के लिये तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ संभावना अनुमति आदि होता है। कर्म वाच्य तथा भाव वाच्य में इसका प्रयोग होता है। कर्तृ वाच्य में

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द्वन्द्व समास परिभाषा तथाभेद…

द्वन्द्व समास सूत्र..उभयपदप्रधानः द्वन्द्वः द्वन्द्व समास..परिभाषा…जिस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। इस समास में अव्ययीभाव और तत्पुरुष की तरह पहला या दूसरा पद प्रधान नहीं होता है। इसके अन्तर्गत च या और से जुड़े हुए दो या दो से अधिक संज्ञाओं का समास होता है।

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बहुब्रीहि समास परिभाषा तथा भेद

जिस समास में आए हुए दो पदों में से कोई भी पद प्रधान न हो और उनसे बना हुआ सामासिक पद अपने पद से भिन्न किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है , उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। बहुब्रीहि समास में सामासिक पद को छोड़ कर कोई अन्य पद ही प्रधान होता है। अर्थात ये

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द्विगु समास परिचय व भेद ..

जिस समास में पूर्व पद संख्यावाचक हो, तथा दूसरा पद संज्ञा, उस समास को द्विगु समास कहते हैं। यदि दोनों पद संख्यावाची होगा तो वह द्विगु समास नहीं होगा। द्विगु समास, कर्मधारय का ही एक प्रकार माना जाता है। द्विगु शब्द में ही प्रथम पद द्वि संख्यावाचक है,तथा दूसरा पद गु (गो) एक संज्ञा है,

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Avyayibhav Samas/अव्ययीभाव समास…..

जिस समास में पूर्व पद की प्रधानता हो तथा सामासिक पद अव्यय बन जाता हो , उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अव्ययीभाव अर्थात जो अव्यय नहीं था , उसका अव्यय हो जाना ।इस समास का सामासिक पद अर्थात समास करने के बाद बना हुआ शब्द ” क्रिया विशेषण अव्यय बन जाता है।” इसमें प्रथम पद

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कर्मधारय समास .…समानाधिकरण तत्पुरुष

कर्मधारय समास को समानाधिकरण तत्पुरुष भी कहते हैं। यह तत्पुरुष समास का ही प्रकार है। समानाधिकरण अर्थात दोनों पद विशेषण विशेष्य भाव में हों। कर्ता कारक के हों अर्थात दोनों पदों की विभक्ति एक ही हो तथा उनके लिंग वचन भी एक समान हों। इस समास के दो मुख्य भेद द्रष्टव्य हैं.. 1.. विशेषण -विशेष्य

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तत्पुरुष समास / Tatpurush Samas…

तत्पुरुष समास .. तत्पुरुष समास…..अर्थात एक यौगिक शब्द…. दो शब्दों का जोड़ा, जिसमें पहला शब्द दूसरे शब्द को निर्धारित करता है। इस यौगिक शब्द में एक शब्द गुण वाचक संज्ञा है,तो दूसरा वास्तविक होता है । तत्पुरुष समास .. .. परिभाषा….तत्पुरुष ,उस समास को कहते हैं, जिसमे प्रथम शब्द द्वितीय शब्द की विशेषता बताता हो।इसमें

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