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वेदान्तसार केअनुसार.अज्ञान क्या है..

वेदान्त सार के अनुसार अज्ञान किसे कहते हैं.. वेदान्त में अज्ञान को अविद्या या माया के रूप में जाना जाता है। अज्ञान से अभिप्राय ज्ञान का अभाव नहीं है। अज्ञान न तो सत् है, न ही असत् है बल्कि यह सत् और असत् के बीच का है, अनिर्वचनीय है। अज्ञानम् तु सदसद्भ्यामनिर्वचनीयम् त्रिगुणात्मकं ज्ञानविरोधीभावरूपं यत्किञ्चिदिति […]

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अनुबन्ध चतुष्टय.. वेदान्त सार के अनुसार..

Anubandh Chatushtaya अनुबन्ध चतुष्टय क्या हैं…सुसंबद्ध तथा विचार करने योग्य तत्वों को अनुबन्ध कहते हैं। जब भी कोई ग्रन्थ लिखा या पढ़ा जाता है तो यह विचार उठता है कि इस ग्रन्थ को पढ़ने का अधिकारी कौन है? इस ग्रन्थ द्वारा प्रतिपाद्य विषय क्या है? विषय और उस शास्त्र में संबन्ध क्या है? तथा उस

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णिनि-इनि प्रत्यय

युक्त / वाला अर्थ में संज्ञा शब्दों के साथ णिनि-इनि प्रत्यय का प्रयोग होता है। जैसे ज्ञान + णिनि >इन् = ज्ञानी अर्थात ज्ञान से युक्त/वाला । फल + णिनि >इन् = फली अर्थात फल से युक्त/ फल वाला। णिनि/इनि प्रत्यय भी मतुप् प्रत्यय की भांति प्रयुक्त होता है। यह कर्तृ वाच्य मे प्रयुक्त होता

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ठक् प्रत्यय /Thak Pratyay

ठक् प्रत्यय एक तद्धित प्रत्यय है। यह प्रत्यय संज्ञा शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है। तस्य इदं, ततः आगतः , तस्य निवासः , तत्र भावः अर्थात.. उसका यह , उससे आया हुआ, उसमें विद्यमान या उसका भाव आदि, इस प्रकार का भाव देता है। *ठक् प्रत्यय का प्रयोग ‘संबन्धी ‘ अर्थ में भाववाचक संज्ञा बनाने

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Matup Pratyay/ मतुप् प्रत्यय

मतुप् प्रत्यय एक तद्धित प्रत्यय है.. जो ‘युक्त‘ अर्थ में या वाला अर्थ में संज्ञा व सर्वनाम शब्द के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे… सःबलवान् अस्ति। वह बलवान है अर्थात बल से युक्त है। हिन्दी भाषा में जो अर्थ वान, वाला, वाली आदि प्रत्ययों से प्रकट होता है, वही अर्थ मतुप् प्रत्यय से प्रकट

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अनीयर् प्रत्यय.परिचय/Aniyar Pratyaya

अनीयर् प्रत्यय वर्तमान कालिक प्रत्यय है।इस प्रत्यय का प्रयोग योग्यता अर्थ में तथा चहिए अर्थ में होता है। जैसे… योग्यता अर्थ में…. उसका कार्य प्रशंसनीय है ..अर्थात प्रशंसा के योग्य है। चहिए अर्थ में … तुम्हें पढ़ना चाहिए। इस प्रत्यय का प्रयोग प्रायः सभी धातुओं के साथ हो सकता है। इसका प्रयोग भी तव्यत प्रत्यय

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तव्यत प्रत्यय…परिचय तथा प्रयोग के नियम ..

तव्यत प्रत्यय का प्रयोग विधिलिङ्ग् लकार के अर्थ में होता है।तथा इसका प्रयोग कर्म वाच्य में होता है। चहिये के अर्थ में धातुओं का प्रयोग करने के लिये तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ संभावना अनुमति आदि होता है। कर्म वाच्य तथा भाव वाच्य में इसका प्रयोग होता है। कर्तृ वाच्य में

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द्वन्द्व समास परिभाषा तथाभेद…

द्वन्द्व समास सूत्र..उभयपदप्रधानः द्वन्द्वः द्वन्द्व समास..परिभाषा…जिस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। इस समास में अव्ययीभाव और तत्पुरुष की तरह पहला या दूसरा पद प्रधान नहीं होता है। इसके अन्तर्गत च या और से जुड़े हुए दो या दो से अधिक संज्ञाओं का समास होता है।

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बहुब्रीहि समास परिभाषा तथा भेद

जिस समास में आए हुए दो पदों में से कोई भी पद प्रधान न हो और उनसे बना हुआ सामासिक पद अपने पद से भिन्न किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है , उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। बहुब्रीहि समास में सामासिक पद को छोड़ कर कोई अन्य पद ही प्रधान होता है। अर्थात ये

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द्विगु समास परिचय व भेद ..

जिस समास में पूर्व पद संख्यावाचक हो, तथा दूसरा पद संज्ञा, उस समास को द्विगु समास कहते हैं। यदि दोनों पद संख्यावाची होगा तो वह द्विगु समास नहीं होगा। द्विगु समास, कर्मधारय का ही एक प्रकार माना जाता है। द्विगु शब्द में ही प्रथम पद द्वि संख्यावाचक है,तथा दूसरा पद गु (गो) एक संज्ञा है,

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