पुनरुक्त शब्द

पुनरक्ति/द्विरुक्ति पुनरुक्त शब्द अर्थात पुनः कहे गये शब्द। इसे पुनरक्ति/द्विरुक्ति भी कहते हैं। पुनरक्ति या द्विरुक्ति का अर्थ है दुहराना। जब हम बात चीत करते हैं, या कुछ लिखते हैं तो कुछ शब्दों को दो बार उच्चारित करते हैं.. जैसे..आईये-आईये .. गरम-गरम चाय पीजिये। इसे ही पुनरुक्त शब्द कहते हैं। पुनरक्त शब्द पुनः +उक्त से […]

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कारण क्या है..

न्याय दर्शन के अनुसार कारण क्या है.. तर्क संग्रह के अनुसार कारण क्या है? साधारण भाषा में कहें तो कारण अर्थात.. हेतु या वजह। जैसे…आप किस कारण से जा रहे हैं? आप क्यों यहां आये हैं… वस्तुतः..कोई भी कार्य बिना कारण के नहीं हो सकता है । प्रत्येक कार्य के लिए कोई न कोई कारण

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पदार्थ क्या है..

तर्क संग्रह के अनुसार पदार्थ क्या है.. न्याय वैशेषिक के अनुसार पदार्थ क्या है..कौन- कौन से पदार्थ हैं?…वस्तुतः द्रव्य गुण कर्म आदि विषय, जिनका विवेचन इस ग्रन्थ में किया गया है, इन्हें ही पदार्थ कहा गया है। न्याय वैशेषिक में तत्व के स्थान पर पदार्थ का प्रयोग किया गया है। पदार्थ का लक्षण है..” पदजन्यप्रतीतिविषयत्वं

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षड् वेदाङ्ग परिचय..

षड् वेदाङ्ग परिचय…वेदाङ्ग क्या हैं… ..वेदाङ्ग का अर्थ है ‘वेदस्य अङ्गानि’ … अर्थात वेद का अङ्ग। वेदों के वास्तविक अर्थ के ज्ञान के लिये जिन साधनों की आवश्यकता होती है, उन्हें वेदाङ्ग कहते हैं। अङ्ग क्या हैं…. अङ्ग्यन्ते ज्ञायन्ते एभिरिति अङ्गानि….जिसके द्वारा किसी वस्तु या व्यक्ति के स्वरूप को समझने में सहायता मिलती है उसे,

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Sanskrit Me Lakar संस्कृत में लकार.

Sanskrit Me Lakar..संस्कृत में लकार का प्रयोग काल के लिये होता है। ये संख्या में दस (10) हैं। लट्, लृट्, लोट् , लङ्ग, विधिलिङ्ग,लिट्, लुट्, लिङ्ग, लुङ्ग लृङ्ग । इन सबका नाम ‘ल’ से है अतः इन्हें लकार कहा जाता है।इन लकारों का क्रियाओं से अत्यन्त निकट संबन्ध होता है। ये विभिन्न कालों के वाचक

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इकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द रूप..

मति गति बुद्धि शब्द रूप इकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द रूप अर्थात जिन स्त्रीलिंग वाचक शब्दों के अंत में ह्रस्व इ होता है, वे इकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द कहे जाते हैं.. ये शब्द रूप एक निश्चित नियम के अनुसार चलते हैं। प्रायः प्रथमा व द्वितीया विभक्ति के द्विवचन व बहुवचन के रूप एक जैसे होते हैं। तृतीया चतुर्थी

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विशेषण की अवस्थाएं

तुलनात्मक विशेषण/Visheshan ki avasthaen विशेषण की अवस्थाएं…या तुलनात्मक विशेषण क्या हैं.. जब भी हम भाषा या साहित्य पढ़ते हैं तो हम देखते हैं कि उसमें विशेषणों का प्रयोग अवश्य होता है। विशेषण भाषा और साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग है। वाक्य में विशेषण का प्रयोग तीन रूपों में दृष्टिगोचर होता है। इन्हें ही विशेषण की

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गुण संधि / Guna Sandhi

सूत्र..आद् गुणः गुण संधि स्वर संधि का एक प्रकार है। गुण संधि का सूत्र..आद् गुणः है। परिभाषा /परिचय अ या आ वर्ण के बाद यदि इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लृ में से कोई वर्ण आए, तो दोनो के स्थान पर क्रमशः.. ए, ओ,अर्, अल् हो जाता है। इसे ही गुण संधि कहते हैं। अर्थात

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सत्व विसर्ग संधि

सत्व विसर्ग संधि..अर्थात विसर्ग का श्,ष्,स् में परिवर्तन होना।सूत्र.. विसर्जनीयस्य सः. नियम 1 प्रथम पद के अन्त मे स्थित विसर्ग को, निम्न लिखित परिवर्तन होता है,यदि… *विसर्ग के बाद यदि च या छ या श् आये तो विसर्ग का ‘ श् ‘ हो जाता है। *ष् या ट या ठ आये , तो विसर्ग को

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पञ्चीकरण प्रक्रिया क्या है..

Vedant Ke Anusar Panchi Karan Prakriya वेदान्त दर्शन में पञ्चीकरण प्रक्रिया स्थूल सृष्टि के निर्माण की एक विशिष्ट प्रक्रिया है।सृष्टि के विकास हेतु पञ्च तन्मात्राओं को परस्पर मिलाने की प्रक्रिया ,पञ्चीकरण प्रक्रिया कही जाती है। आकाश तेज वायु जल और पृथ्वी ये पांच तन्मात्राएं हैं। जब इनका परस्पर समिश्रण हो जाता है तो ये महाभूत

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