सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर..

वेदांतसार के अनुसार सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर .. सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर क्या है? वेदान्त के अनुसार..सूक्ष्म शरीर ही लिङ्ग शरीर कहा जाता है। इनके द्वारा ही शुद्ध चैतन्य आत्मा का ज्ञान होता है। इस लिङ्ग शरीर के सत्रह( 17) अवयव बताये गये हैं। इस सूक्ष्म शरीर के द्वारा जीवात्मा के अस्तित्व का बोध होता […]

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जश्त्व संधि

व्यञ्जन सन्धि पदान्त जश्त्व संधि.सूत्र…”झलां जशोअन्ते “ नियम.. *….यदि प्रथम पद के अन्त मे किसी भी वर्ग का पहला या दूसरा, या तीसरा, या चौथा वर्ण आए और दूसरे पद के आदि में कोई भी वर्ण आये, तो प्रथम पद के अन्तिम वर्ण को उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। उदाहरण…अच् + अन्तः

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यण् संधि /Yana Sandhi…

सूत्र.. इको यणचि… यण् संधि अर्थात इक् को यण् आदेश होने का नियम.. इक् अर्थात इ ई, उ ऊ, ऋ लृ। य़ण् अर्थात य् व् र् ल् । यदि प्रथम पद के अन्त में ह्रस्व या दीर्घ इ, उ , ऋ, लृ मे से कोई स्वर हो तथा दूसरे पद के आदि मे कोई अन्य

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श्चुत्व संधि /Shchutva Sandhi

श्चुत्व संधि व्यञ्जन संधि का एक प्रकार है। व्यञ्जन संधि अर्थात व्यञ्जन वर्ण का स्वर या व्यञ्जन के साथ मेल। सूत्र..”स्तोः श्चुनाश्चुः “ यदि प्रथम पद के अन्त में सकार – ‘स’ या तवर्ग के बाद मे शकार -‘श ‘ या चवर्ग आये तो स को श तथा तवर्ग को चवर्ग हो जाता है। अर्थात

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अकारान्त पुलिङ्ग शब्द रूप.

अकारान्त पुलिङ्ग शब्द रूप…के अन्तर्गत राम बालक नर वृक्ष आदि के रूप आते हैं। जिन शब्दों के अन्त में अ होता है,उन्हें अकारान्त पुलिङ्ग शब्द कहते हैं।जैसे.बालक, राम, नर, वृक्ष, आदि। ये सारे शब्द एक निश्चित नियम के अनुसार चलते हैं। प्रायः प्रथमा व द्वितीया विभक्ति के द्विवचन व बहुवचन के रूप एक जैसे होते

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रमा लता शब्द रूप.

रमा लता शब्द रूप तथा बालिका विद्याअजा आदि शब्द आकारान्त होते हैं, क्योंकि इनके अन्त में आ होता है। ये सारे रूप एक निश्चित नियम के अनुसार चलते हैं। प्रायः प्रथमा व द्वितिया विभक्ति के द्वि वचन व बहु वचन के रूप एक जैसेहोते हैं। तृतीया चतुर्थी व पंचमी के द्वि वचन एक जैसे होते

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अध्यारोप क्या है..

वेदांतसार के अनुसार अध्यारोप क्या है.. अध्यारोप क्या है ..अद्वैत वेदान्त के अनुसार जीव और ब्रह्म एक हैं , उनका ऐक्य प्रतिपादन ही इस ग्रन्थ का विषय है। ब्रह्म के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान कराना अद्वैत वेदान्त का लक्ष्य है,परंतु भ्रम वश हम इसमें भेद समझ लेते हैं। वेदांत में अध्यारोप क्या है.. “जो वस्तु

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वेदान्तसार केअनुसार.अज्ञान क्या है..

वेदान्त सार के अनुसार अज्ञान किसे कहते हैं.. वेदान्त में अज्ञान को अविद्या या माया के रूप में जाना जाता है। अज्ञान से अभिप्राय ज्ञान का अभाव नहीं है। अज्ञान न तो सत् है, न ही असत् है बल्कि यह सत् और असत् के बीच का है, अनिर्वचनीय है। अज्ञानम् तु सदसद्भ्यामनिर्वचनीयम् त्रिगुणात्मकं ज्ञानविरोधीभावरूपं यत्किञ्चिदिति

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अनुबन्ध चतुष्टय.. वेदान्त सार के अनुसार..

Anubandh Chatushtaya अनुबन्ध चतुष्टय क्या हैं…सुसंबद्ध तथा विचार करने योग्य तत्वों को अनुबन्ध कहते हैं। जब भी कोई ग्रन्थ लिखा या पढ़ा जाता है तो यह विचार उठता है कि इस ग्रन्थ को पढ़ने का अधिकारी कौन है? इस ग्रन्थ द्वारा प्रतिपाद्य विषय क्या है? विषय और उस शास्त्र में संबन्ध क्या है? तथा उस

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णिनि-इनि प्रत्यय

युक्त / वाला अर्थ में संज्ञा शब्दों के साथ णिनि-इनि प्रत्यय का प्रयोग होता है। जैसे ज्ञान + णिनि >इन् = ज्ञानी अर्थात ज्ञान से युक्त/वाला । फल + णिनि >इन् = फली अर्थात फल से युक्त/ फल वाला। णिनि/इनि प्रत्यय भी मतुप् प्रत्यय की भांति प्रयुक्त होता है। यह कर्तृ वाच्य मे प्रयुक्त होता

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