तत्पुरुष समास / Tatpurush Samas…

तत्पुरुष समास ..

तत्पुरुष समास…..अर्थात एक यौगिक शब्द…. दो शब्दों का जोड़ा, जिसमें पहला शब्द दूसरे शब्द को निर्धारित करता है।

इस यौगिक शब्द में एक शब्द गुण वाचक संज्ञा है,तो दूसरा वास्तविक होता है ।

तत्पुरुष समास .. ..

परिभाषा….तत्पुरुष ,उस समास को कहते हैं, जिसमे प्रथम शब्द द्वितीय शब्द की विशेषता बताता हो।इसमें अन्तिम पद या दूसरा पद प्रधान होता है।

चूंकि तत्पुरुष का प्रथम पद वैशिष्ट्यबोधक होता है अर्थात विशेषण का कार्य करता है तथा दूसरा पद विशेष्य होता है इसलिए तत्पुरुष को प्रायेण उत्तर पद प्रधानः तत्पुरुषः कहा गया है।

उत्तर या द्वितीय पद प्रधान समास होने के कारण समस्त पद का लिंग दूसरे पद के लिङ्ग के अनुसार निर्धारित होता है।

जैसे .. राजकुमार आए थे। इस वाक्य में समस्त पद राजकुमार है ।

जिसका विग्रह है.. ” राजा का कुमार ”

अब प्रश्न करने पर कि .. कौन आया था? राजा या कुमार ? उत्तर है … कुमार ।

इसी प्रकार….

हम सब भारतवासी हैं = भारत का वासी.. इसमें भारत नहीं वासी प्रधान है।

रामचरितमानस तुलसीकृत है। यहां कृत प्रधान है।

“राम की माता ” को बुलाओ ,यह कहने पर माता बुलायी जायेंगी , न कि राम।

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि यह समास उत्तर पद प्रधान होता है।

समासान्त पद का लिङ्ग और वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।

तत्पुरुष शब्द के दो अर्थ माने गये हैं..

तस्य पुरुषः तत्पुरुषः

सःपुरुषः तत्पुरुषः

इन दो अर्थों के अनुसार ही इस समास के दो भेद होते हैं…

1..व्याधिकरण तत्पुरुष..इसमें समास का पहला पद किसी दूसरी विभक्ति का होता है।

जैसे..राज्ञःपुरुषः इसमें प्रथम पद राज्ञः षष्ठी विभक्ति का है तथा दूसरा पद प्रथमा विभक्ति का है।

व्याधिकरण तत्पुरुष के छः (6)भेद हैं..

1.द्वितीया तत्पुरुष

2.तृतीया तत्पुरूष

3.चतुर्थी तत्पुरूष

4..पंचमी तत्पुरूष

5.. षष्ठी तत्पुरूष

6. सप्तमी तत्पुरूष

2..समानाधिकरण तत्पुरुष..इसमें दोनों पद की विभक्ति एक ही होती है।

जैसे..कृष्णः सर्पः इसमें दोनो पद प्रथमा विभक्ति में हैं।

समानाधिकरण तत्पुरुष के दो भेद हैं..

१ कर्मधाराय

२..द्विगु

व्याधिकरण तत्पुरूष…

1..द्वितीया तत्पुरुष समास

.इसमें प्रथम पद के साथ कर्म कारक का चिन्ह् ( को ) रहता है। अर्थात पहला पद द्वितीया विभक्ति का होता है।

इस समास में श्रित, अतीत , पतित , गत , अत्यन्त, प्राप्त, आपन्न , आदि शब्दों के साथ द्वितीया तत्पुरुष होता है।

उदाहरण..

सामासिक पद विग्रहहिन्दी विग्रह
कृष्णाश्रितःकृष्णं श्रितःकृष्ण पर आश्रित
दुखातीतःदुखम् अतीतःदुख के पार
मुहूर्तसुखम्मुहूर्तम् सुखम्मुहूर्त भर का सुख
शरणागतःशरणम् आगतःशरण में आया हुआ
प्रलयगतःप्रलयं गतःविनाश को प्राप्त
नरकपतितःनरकम् पतितःनरक में गिरा हुआ
अग्निपतितःअग्निं पतितःअग्नि में गिरा हुआ
मेघात्यस्तःमेघं अत्यस्तःमेघ के पार पहुंचा हुआ
जीवनप्राप्तजीवनं प्राप्तःजीवन को प्राप्त
कष्टापन्नःकष्टं आपन्नःकष्ट को पाया हुआ
गजारूढः गजम् आरूढ़:हाथी पर चढ़ा हुआ

हिन्दी के उदाहरण

सामासिक पदसमासविग्रह
मरणासन्नमरण को आसन्न
परलोकगमनपरलोक को गमन
स्वर्गप्राप्तस्वर्ग को प्राप्त
गृहागतगृह को आगत
पोकेट् मारपोकेत मारने वाला
देशगतदेश को गत
आशातीतआशा को अतीत ( लांघ कर)

2..तृतीया तत्पुरुष…

जब सामासिक पद का पहला पद तृतीया विभक्ति में हो तो वहां तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे..

धनहीनःधनेन हीनःधन से हीन
हरित्रातःहरिणा त्रातःहरि द्वारा रक्षा किया गया
गुरुसदृशःगुरुणा सदृशःगुरु के सदृश
बाणहतःबाणेन हतःबाणों से हत( मारा हुआ )
बुद्धिरहितःबुद्ध्या रहितःबुद्धि से रहित
आचारकुशलःआचारेण कुशलःआचार से कुशल
तुलसीकृत्तुलसी द्वारा कृत
विद्यारहितःविद्यया रहितःविद्या से रहित
मदरहितःमदेन रहितःमद से रहित
अग्निदग्धःअग्निना दग्धःअग्नि से जला
हस्तलिखित:हस्तेन लिखितःहाथ से लिखित
रेखांकितरेखा से अंकित
भयाकुलःभयेन् आकुलःभय से आकुल
कष्टसाध्यकष्टेन साध्यकष्ट से साध्य
भयाकुलभय से आकुल

नोट. पूर्व, सदृश, सम, ऊन ( कम ) कलह ( लड़ाई) निपुड़ (चतुर) मिश्र ( मिला हुआ) श्लक्षण ( चिकना) इन शब्दों के साथ तृतीया तत्पुरुष समास होता है।

मासपूर्वःमासेन पूर्वःमास भर पूर्व
मातृसदृशःमात्रा सदृशःमाता के समान
पितृसदृशःपित्रा सदृशःपिता के समान
धान्योनम्धान्येन ऊनम्धान्य से न्यून
वाक्कलहःवाचा कलहःवाणी से कलह
वाग्युद्धम्वाचा युद्धम्वाणी से युद्ध
आचारनिपुणःआचारेण निपुणःआचार से निपुण
आचारकुशलआचारेण कुशलःआचार से कुशल
गुडमिश्रम्गुडेन मिश्रम्गुड मिश्रित
घर्षणश्लक्ष्णंघर्षणेन श्लक्ष्णंरगड़ने से चिकना
कुट्टनश्लक्ष्णंकुट्टनेन श्लक्ष्णंकूटने से चिकना

3..चतुर्थी तत्पुरुष समास ..

जब तत्पुरुष का पहला पद चतुर्थी विभक्ति का हो तब् उसे चतुर्थी तत्पुरुष कहते हैं।

यूपदारुःयूपाय दारुःयूप के लिये दारु
भूतबलिःभूतेभ्यः बलिःभूत के लिये बलि
गोहितम्गोभ्यः हितम्गायों के लिये हित
गोसुखम्गोभ्यः सुखम्गायों के लिये सुख
धनकामनाधनाय कामनाधन के लिये कामना
रक्षापुरुषःरक्षायैः पुरुषःरक्षा के लिये पुरुष
सुखार्थंसुखाय* इदम्सुख के लिये
गुरुदक्षिणागुरुवे दक्षिणागुरु के लिये दक्षिणा
द्विजार्थंद्विजाय अयम्द्विज के लिये
देशार्पणम्देशाय अर्पणम्देश के लिये अर्पण
विद्यालयःविद्यायै आलयःविद्या के लिये आलय
सत्याग्रहसत्य के लिये आग्रह
युद्धभूमियुद्ध के लिये भूमि
देशभक्तिदेश के लिये भक्ति
हवनसामग्रीहवन के लिये सामग्री
रसोईघररसोई के लिये ghar1
जेबखर्चजेब के लिये खर्च

4..पञ्चमी तत्पुरुष…

जब सामासिक पद का प्रथम पद पञ्चमी विभक्ति में हो तो उसे पञ्चमी तत्पुरुष कहते हैं।

चौरभयंचौरात् भयम्चोर से भय
सिंहभयम्सिंहात भयम्सिंह से भय
दूरातागतःदूराद् आगतःदूर से आया हुआ
अश्वपतितःअश्वात.पतितःअश्व से पतित
रोग्मुक्तःरोगात मुक्तःरोग से मुक्त
बन्धान्मुक्तःबन्धनात् मुक्तःबन्धन से मुक्त
गुरुपठितम्गुरो पठितम्गुरु से पठित
देहमुक्तःदेहात् मुक्तःदेह से मुक्त
निरङ्गुलम्निर्गतःअन्गुलिभ्यःअन्गुलियों से निकाला हुआ
पथभ्रष्ट:पथात् भ्रष्टःपथ से भ्रष्ट
जनमन्धःजन्मात् अन्धःजन्म से अन्धा

हिन्दी के उदाहरण…

देश निकालादेश से निकाला
जन्मान्धजन्म से अन्धा
पदच्युतपद से च्युत
ऋणमुक्तऋण से मुक्त
कामचोरकाम से चोरी
धर्मभ्रष्टधर्म से भ्रष्ट

5..षष्ठी तत्पुरुष…

जब सामासिक पद का प्रथम पद षष्ठी विभक्ति में होता है , तब उसे षष्ठी तत्पुरुष समास कहते हैं।

यह समास प्रायः सभी षष्ठी अन्त वाले शब्दों के साथ होता है।

जैसे..

सुरेशःसुराणाम् ईशःसुरों का ईश
ईश्वरभक्तःईश्वरस्य भक्तःईश्वर का भक्त
नरपतिःनाराणां पतिःनरों का पति
देवपतिःदेवानाम् पतिःदेवों का पति
राजपुरुषःराज्ञः पुरुषःराजा का पुरुष
वृक्षछायावृक्षस्य छायावृक्ष की छाया
भवदाज्ञाभवतः आज्ञाआपकी आज्ञा
राजदण्डःराज्ञः दण्डःराजा का दण्ड
विश्वामित्रःविश्वस्य मित्रःविश्व का मित्र
धर्मदण्डःधर्मस्य दण्डःधर्म का दण्ड
सुवर्णमुद्रासुवर्णस्य मुद्रास्वर्ण की मुद्रा
गृहस्वामीगृहस्य स्वामीगृह का स्वामी
रामकथारामस्य कथाराम की कथा
गङ्गाजलगङ्गायाः जलमगंगा का जल
तत्वार्थनिर्णयःतत्वार्थस्य निर्णयःतत्व ( वास्तविक )अर्थ का निर्णय

6…सप्तमी तत्पुरुष समास….

जब सामासिक पद का प्रथम सप्तमी विभक्ति में होता है तो उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे..

नरोत्तमःनरेषु उत्तमःनरों में उत्तम
अक्षशौण्डःअक्षेषु शौण्डःअक्षो में चतुर– पासों में चतुर
रण कुशलःरणे कुशलःरण में कुशल
पितृस्नेहःपितरि स्नेहःपिता का स्नेह
क्षेत्रोत्पन्नःक्षेत्रे उत्त्पन्नःक्षेत्र में उत्तपन्न
प्रेमधूर्तःप्रेम्णि धूर्तःप्रेम में धूर्त
सभापण्डितःसभायां पण्डितःसभा में पण्डित
युद्धवीरःयुद्धे वीरःयुद्ध में वीर
पुरुषोत्तमःपुरुशेषु उत्तमःपुरुषों में उत्तम
स्नेहमग्नःस्नेहे मग्नःस्नेह.में मग्न
कार्यकुशलःकार्ये कुशलःकार्य में कुशल
जलमग्नःजले मग्नःजल में मग्न – ( डूबा )
शस्त्रदक्षःशस्त्रेषु दक्षःशास्त्रों में दक्ष
मध्यान्तरःमध्ये अन्तरःमध्य में अन्तर
नीतिनिपुणनीतौ निपुणःनीति में निपुण
वाक्पटुःवाचि पटुःवाक् में पटु

तत्पुरुष समास के उक्त भेदों के अतिरिक्त छः (6) और भेद होते हैं…

1..नञ

2 अलुक्

3..उपपद

4..प्रादि

5..मध्यम लोपी

6..मयूर व्यंसकादि

नञ तत्पुरुष..

जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद निषेध वाचक’ ‘ का कोई रूप – अ या अन् होता है , तथा दूसरा पद संज्ञा या विशेषण होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।

नोट .. यदि उत्तर पद का पहला अक्षर व्यंजन हो , तो ‘न ‘ का अ जुड़ता है । अर्थात न , अ में परिवर्तित हो जाता है।

यदि उत्तर पद का पहला अक्षर स्वर हो तो न के स्थान पर ‘अन् ‘ हो जाता है।

जैसे..अब्राह्मणः = न ब्राह्मणः यहां न, ब (व्यञ्जन )के पूर्व आया है, अतः न का अ जुड़ा।

न अश्वः = अनश्वः यहां न स्वर के पूर्व आया है, अतः अन् जुड़ा।

अगजः न गजःजो गज न हो
अनुक्तःन उक्तःजो उक्त न हो
अक्षत्रम्न क्षत्रंजो क्षत्र न हो
अन्यायःन न्यायःजो न्याय न हो
अयोग्यःन योग्यःजो योग्य न हो
असत्यम्न सत्यम्जो सत्य न हो
अनश्वरःन नश्वरःजो नश्वर न हो
अधर्मःन धर्मःजो धर्म न हो
अचरःन चरःजो चर न हो
आनगतःन आगतःजो आगत नहीं है
अपूज्यःन पूज्यःजो पूज्य नहीं है
अनब्जम्न अब्जम्जो कमल न हो
अनर्थन अर्थजिसका अर्थ नहीं है / अर्थहीन
अनन्तन अन्तजिसका अन्त न हो
अनादिन आदिजिसका आदि न हो
अचेतनःन चेतनःजो चेतन नहीं है
अनुत्साहःन उत्साहःउत्साह का अभाव
अनास्थान आस्थाआस्था का अभाव
अनिच्छान इच्छाइच्छा का अभाव
अनेकःन एकःजो एक नहीं है

नोट..ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट होता है की भी एक प्रकार से विशेषण का कार्य करता है।

अलुक्त तत्पुरुष…

जब् तत्पुरुष में प्रथम पद की विभक्ति का लोप नहीं होता तो उसे अलुक् तत्पुरुष कहते हैं।

जैसे.. युधिष्ठिर , मनसगप्ता ( किसी स्त्री का नाम ) परस्मैपदं , आत्मनैपदं , देवानांप्रिय ( मूर्ख ) ,सरसिजम् , खेचरः आदि।

अलुक् समास के ये उदाहरण पूर्व ग्रन्थकारों के ग्रन्थों में प्राप्त होता है।

उपपद तत्पुरुष समास..

जब तत्पुरुष का प्रथम पद कोई उपपद हो तथा द्वितीय पद कृदन्त हो। परन्तु यह कृदन्त ऐसा होना चहिये की प्रथम शब्द के न रहने पर असंभव हो जाये।

जैसे..कुम्भकारः यहां कुम्भ और कार दो शब्द हैं..कुम्भ कर्म रॊओ से उपपद है , कार ( बनाने वाला ) क्रिया का रूप नहीं है।

यदि कार के पहले कुम्भ न हो तो कार का अपने आप में कोई प्रयोग नहीं है..अर्थात यह किसी पद के साथ ही सार्थक होता है , अकेले नहीं।

इसी प्रकार सामगः का गः भी अकेले प्रयुक्त नहीं हो सकता , इसके पूर्व कोई पद अवश्य होना चाहिये।

अन्य उदाहरण…

कुम्भं करोति इतिकुम्भकार
मालां करोति इतिमालाकार
स्वर्णं करोति इतिस्वर्णकार
चित्रम् करोति इतिचित्रकार
धनम् ददातिधनदः
साम गायतिसामगः
धर्मं जानातिधर्मज्ञः
चर्मं करोति इतिचर्मकारः

प्रादि तत्पुरुष… जब तत्पुरुष का प्रथम शब्द कु हो , या प्र आदि उपसर्ग में से कोई हो , या गति संज्ञक कोई पद हो , तो उसे प्रादि तत्पुरुष कहते हैं।

कुपुरुषःकुत्सित पुरुषःकु
प्राचार्यःप्रगत आचार्यःप्र
प्र पितामहःप्रगतपितामहःप्र
उद्वेलःउद्गतःवेलांउत्
निर्गृहःनिर्गतः गृहात्निर्
सुपुरुषःशोभनः पुरुषःसु

गति तत्पुरुष…

कुछ कृत प्रत्ययों से अन्त होने वाले शब्दों के साथ , कुछ विशेष शब्दों का जब समास होता है , तब् उस समास को गति तत्पुरुष कहते हैं।जैसे..

ऊरीकृत्यऊरी कृत्वा
शुक्लीकृत्यशुक्लं कृत्वा
तिरस्कृत्यतिरः कृत्वा

मध्यमपद लोपी तत्पुरुष…

ऐसे सामासिक पद जिसमें पहले पद के दूसरे भाग का लोप हो गया हो, जिसे साधारणतः रहना चाहिये , उसे मध्यम पद लोपी तत्पुरुष कहते हैं।

जैसे…शाकपार्थिवः

इसका विग्रह है… शाक् प्रियः पार्थिवः

इसी प्रकार ..देवब्राह्मणः = देव पूजकः ब्राह्मणः

इन दोनों उदाहरणों में प्रिय और पूजक शब्द जो शब्स के मध्य में आते हैं, और जिन्हें रहना चाहिये, इनका लोप हो गया है।

मयूरव्यंसकादि …

कुछ ऐसे तत्पुरुष जिसमें नियमों का प्रत्यक्ष उलङ्घन् होता है , उन्हें आचार्य पाणिनि ने मयूरव्यंसकादि नाम दे कार अलग कार दिया है।

जैसे…

मयूरव्यंसकःव्यन्सकः मयूरः
राजान्तरंअन्यो राजा

द्वन्द्व समास के लिये इसे देखिये..

द्विगु समास..

अव्ययीभाव समास के लिये इसे पढिये..

कर्मधारय समास के लिये यहां जाईये

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