संज्ञा विधायक सूत्र..आचार्य पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रयत्न लाघव के लिये कई संज्ञा सूत्रों की रचना की है। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं..
संहिता संज्ञा ..
सूत्र ” परः संनिकर्षः संहिता “
वर्णों की अत्यन्त समीपता अर्थात…व्यवधान रहित उच्चारण को संहिता कहते हैं।
माहेश्वर सूत्र के लिये इसे पढ़े
जैसे…सुधी + उपास्य में ई के पश्चात बिना किसी बाधा के उ आया है। अतः इन दोनों वर्णों की समीपता(पास -पास) होने को संहिता कहा जाता है। अतः ई +ऊ की संहिता संज्ञा होगी।
गुण संज्ञा…
सूत्र.. अदेङ्ग् गुणः.. अर्थात अ, ए, और ओ गुण कहलाते हैं।
वृद्धि संज्ञा..
सूत्र.. वृद्धिरादैच….
.अर्थात आ , ऐ ,औ की वृद्धि संज्ञा होती है।
घि संज्ञा…
सूत्र.. “शेषो ध्यसखि “
सखि शब्द को छोड़ कर नदी संज्ञक से भिन्न ह्रस्व ईकारान्त और ह्रस्व उकारान्त शब्द की घि संज्ञा होती है।
जैसे..हरि , भानु , गुरु आदि।
संज्ञा विधायक सूत्र…
प्रातिपदिक संज्ञा…
सूत्र..अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम्
अर्थात..धातु , प्रत्यय और प्रत्ययान्त (प्रत्यय अन्त वाले ) को छोड़ कर कोई भी शब्द जो अर्थ युक्त हो उसकी प्रातिपदिक संज्ञा होती है। प्रातिपदिक होने के बाद पदों में सुप् आदि प्रत्यय जोड़े जाते हैं।
कृत्तद्धितसमासाश्च
इस सूत्र से कृदन्त , तद्धितान्त और समास भी प्रातिपदिक होते हैं।
नदी संज्ञा विधायक सूत्र
.सूत्र…यू स्त्राख्यौ नदी..ईदूदन्तौ नित्य स्त्रिलिङ्गौ नदीसंज्ञौ स्तः …
यू अर्थात ई + ऊ। दीर्घ ईकारान्त तथा दीर्घ ऊकारान्त नित्य स्त्रीलिङ्ग शब्द नदी संज्ञक होते हैं। नित्य स्त्रीलिङ्ग अर्थात ऐसे शब्द जो सदा स्त्रीलिङ्ग में ही प्रयोग किये जाते हैं। जैसे..गौरी, वधू , नदी, सखी आदि नित्य स्त्रीलिङ्ग हैं। अतः इनकी नदी संज्ञा होगी।
संज्ञा विधायक सूत्र
उपधा संज्ञा ..
सूत्र..” अलोन्त्यात्पूर्व उपधा “ किसी पद के अन्तिम अल्..स्वर या व्यञ्जन के तुरन्त पहले वाले वर्ण को उपधा कहते हैं । जैसे… सखन् ( सख् अन् ) में अन्तिम वर्ण न् है , और उसके तुरन्त पहले अ वर्ण है। अतः अ को उपधा कहा जायेगा।
अपृक्त…
सूत्र…अपृक्तं एकाल् प्रत्ययः
एक वर्ण वाले प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा होती है। जैसे…सखान् + स् में स् प्रत्यय एक वर्ण वाला प्रत्यय है। इसलिये स् प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा होगी।
पद संज्ञा..
सूत्र..सुप्तिङ्गन्तं पदम्..
सुप् तथा तिङ्ग् प्रत्यय से युक्त शब्दों को पद कहते हैं।
संस्कृत व्याकरण में सुप् और तिङ्ग् प्रत्यय लगने के बाद ही कोई शब्द पद कहा जाता है। जैसे..राम में सु प्रत्यय लगने पर रामः पद बना।
प्रातिपदिक में लगने वाले प्रत्ययों को सुप् तथा धातु में लगने वाले प्रत्ययों को तिङ्ग् कहते हैं।
गति..
सूत्र ” गतिश्च “
प्र , परा , अप् आदि जो 22 उपसर्ग हैं, वे क्रिया के योग में गति संज्ञा होती है। जैसे..प्रधी में प्र उपसर्ग के क्रिया के साथ योग होने पर प्र की गति संज्ञा है।
विभाषा..
सूत्र…” न वेति विभाषा “
निषेध और विकल्प को विभाषा कहा जाता है। अर्थात कहीं पर व्याकरण सम्बन्धी कार्य होना और कहीं पर न होना इस विकल्प वाली व्यवस्था विभाषा कही जाती है।
टि…
सूत्र..अचोअन्त्यदि टि..
किसी भी शब्द का अन्तिम स्वर तथा उसके बाद का व्यञ्जन यदि व्यञ्जन हो तो वह भी टि संज्ञक कहा जाता है। जैसे..शक का अ तथा मनस् का अस् टि संज्ञा वाला है।
सवर्ण..
सूत्र..तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम्….
जब दो या कई वर्णों का उच्चारण स्थान जो मुख में स्थित ( कण्ठ, तालु आदि ) तथा उच्चारण में लगने वाला आभ्यान्तर प्रयत्न समान या एक हों तो उन्हें परस्पर सवर्ण कहा जाता है।
जैसे… त और थ इन दोनों का उच्चारण स्थान दन्त तथा आभ्यान्तर प्रयत्न स्पृष्ट है, अतः ये दोनों सवर्ण हैं।
प्रगृह्य.. संज्ञा विधायक सूत्र
सूत्र..ईदूदेद्विवचनम् प्रगृह्यम ..
ईकारान्त , ऊकारान्त , ऐकारान्त वाले द्विवचन वाले ( सुप् अन्त तथा तिङ्ग् ) पद प्रगृह्य कहे जाते हैं। अर्थात जिस द्विवचनान्त पद के अन्त में ई, ऊ तथा ए रहता है, उसकी प्रगृह्य संज्ञा होती है।
यह प्रगृह्य संज्ञा पद के अन्तिम ईकार, ऊकार या एकार की ही होती है।
जैसे…हरी चमू विष्णू तथा गङ्गे ये द्वि वचन के रूप हैं। इनके अन्त में ई,ऊ, ए हैं,अतः ई , ऊ, ए की प्रगृह्य संज्ञा होगी।
सर्वनाम स्थान…
सूत्र..शि सर्वनामस्थानम्….
शि की सर्वनाम स्थान संज्ञा होती है। जैसे..ज्ञान + इ इसमे इ शि का भाग है। अतः इ की शि संज्ञा है।
सुड नपुन्सकस्य…
पुलिङ्ग् और स्त्रीलिंग प्रातिपदिक शब्दों के आगे लगने वाले सुट्…सु औ जस् तथा औट् विभक्ति प्रत्यय सर्वनाम स्थान कहे जाते हैं।
निष्ठा.. संज्ञा विधायक सूत्र
सूत्र..क्तक्तवतु निष्ठा…
अर्थात क्त और क्तवतु प्रत्ययों की निष्ठा संज्ञा होती है।
क्त प्रत्यय में क् की तथा क्तवतु प्रत्यय में क् तथा उ की इत् संज्ञा होती है तथा इनका लोप हो जाता है। ये प्रत्यय भूतकाल के अर्थ में धातु के साथ प्रयुक्त होते हैं।
उपसर्जन संज्ञा…
सूत्र…प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् …
अर्थात समास विधायक सूत्रों में जो पद प्रथमा विभक्ति में निर्दिष्ट हो, उसकी उपसर्जन संज्ञा होती है।
अर्थात अव्ययी भाव तथा तत्पुरुष समास आदि का विधान करने वाले सूत्रों में, प्रथमा विभक्ति से जिस पद का निर्देश हो,उसे उपसर्जन कहते हैं।
जैसे…उप्कृष्णं
प्रश्न – उत्तर
प्रश्न.. संहिता किसे कहते हैं?
उत्तर..वर्णों की अत्यन्त समीपता को ,अर्थात पास – पास होने को संहिता कहते हैं।
प्रश्न..सवर्ण किसे कहते हैं तथा इसका सूत्र क्या है?
उत्तर..जब दो या अधिक वर्णों का उच्चारण स्थान तथा प्रयत्न एक हों, तो उन्हें सवर्ण कहते हैं।
सूत्र.. तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम्
प्रश्न..गुण संज्ञा का सूत्र क्या है?
उत्तर..अदेङ्ग गुणः।
जश्त्व संधि के लिये इसे देखें…