अव्यय किसे कहते हैं…..अव्यय का शाब्दिक अर्थ है.. जो व्यय ना हो।
अव्यय किसे कहते हैं. परिभाषा
अव्यय वे शब्द हैं, जिनमें लिंग, विभक्ति या वचन के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है। सदा एक सा रहता है।
इनका रूप नहीं बदलता है इस लिए इन्हें अविकारी शब्द कहा जाता है। जैसे..
जब , तब , कब ,आज , इधर , उधर, कब ,कहां,किधर अद्य, श्वः, अभी,यदा,कदा परश्वः,परसो,
कल,किन्तु,परन्तु, वाह, ठीक, बल्कि, इसलिये, तथा, और, आदि।
अनुवाद करते समय इनके प्रयोग करने में सरलता रहती है,क्योंकि इनमें रूप आदि का कोई ध्यान नहीं रखना पड़ता।
अव्यय के भेद…
अव्यय के चार भेद हैं..
1..क्रियाविशेषण 2. संबन्धबोधक
3… समुच्चयबोधक 4.. विस्मयादिबोधक
1..क्रिया विशेषण – क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द क्रिया विशेषण अव्यय कहे जाते हैं।
क्रिया विशेषण के निम्नलिखित भेद हैं..
1..कालवाचक 2.. स्थानवाचक 3.. रीतिवाचक 4. परिमाणवाचक 5. गुणवाचक
1..काल वाचक ….. इन अव्यय शब्दों से क्रिया के होने के समय का बोध होता है।
काल वाचक अव्यय शब्दों में..आज, कल, परसों, तुरन्त, अभी, अब , जब , तब , कब ,सदा , नित्य , कभी – कभी, आज – कल,
कभी भी, अब से, पहले, पीछे, बहुधा , प्रायः, प्रतिदिन, दिनभर, रातभर लगातार, सवेरे आदि आते हैं।
उदाहरण….1. मैं परसों बाजार जाऊंगी।
2.अब से कोई देर से नहीं आएगा ।
3.. तुरन्त बाहर जाओ।
4.. सदा सत्य बोलो।
2..स्थान वाचक अव्यय… येअव्यय क्रिया के होने का स्थान बताते हैं.. अर्थात क्रिया कहां हुई।
इसके अंतर्गत.. यहां, वहां, जहां,कहां , बाहर , भीतर, अंदर, इधर उधर , अगल बगल, चारो ओर, दोनो ओर, पास में, अगल बगल आदि।
जैसे .. 1..मोहन यहां नहीं रहता है।
2..वह कहां जायेगा?
3..जहां थैला रखा है , वहीं चाभी है।
3..रीति वाचक.. इन अव्ययों से क्रिया की रीति का पता चलता है। अर्थात क्रिया कैसे हो रही है या हुई।
इसके अन्तर्गत….प्रकार,ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, तेज, मन्द, स्वयं, स्वतः, परस्पर, फटाफट, अनिश्चय… कदाचित, शायद, यथासंभव
अवधारण..मात्र,भर, तक , ये सब् शब्द आते हैं।
जैसे.. 1.वर्षा धीरे धीरे हो रही है।
2.मोहन तेज दौडता है।
3. तुम वाराणसी कैसे गये?
4..वायु मन्द मन्द चल रही है।
4.. परिमाण वाचक…इनसे क्रिया की मात्रा का पता चलता है। इसके अन्तर्गत.. बहुत, बड़ा, अत्यन्त,बिल्कुल,अतिशय, कुछ, लगभग, यथेष्ट, केवल, थोड, अधिक, कम, अत्यधिक, जितना आदि शब्द आते हैं।
जैसे..1. रमेश अत्यंत विनम्र है ।
2.. विशाल बहुत कम बोलता है।
3..अतिशय बोलना हानिकारक है ।
5..गुण वाचक क्रियाविशेषण..ये अव्यय शब्द क्रिया के गुण दोष आदि बताते हैं।
जैसे…कोयल मीठा बोलती है। यहां बोलने क्रिया की विशेषता मीठा बताया गया है।
2.संबन्ध बोधक – वे शब्द जो वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम जे साथ लग कर , वाक्य के अन्य पदों के साथ संबन्ध बनाते हैं।
इसके अन्तर्गत.. पास, तक, बिना, पहले, द्वारा, अनुसार, आदि शब्द आते हैं।
नोट.. संबन्धबोधक प्रायः संज्ञा या सर्वनाम शब्द के बाद लगते हैं, परन्तु यदा – कदा पहले भी लग जाते हैं।
जैसे.. 1.गुरु के बिना ज्ञान नहीं प्राप्त होता है।
2.धन से हीन व्यक्ति किसी काम का नहीं होता।
3..खाने के पहले हाथ धोना चहिये।
4..दिन भर खाने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव होता है।
3..समुच्चयबोधक – ऐसे शब्द जो दो पदों , दो वाक्यों , या वाक्यांशों को जोड़ने का कार्य करते हैं , उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
इसके अन्तर्गत.. और, तथा , परन्तु , क्योंकि , यदि , अर्थात , या , अथवा आदि शब्द आते हैं।
जैसे…वह स्टेशन पर पहुंचा और गाड़ी छूट गई।
इस वाक्य में और दो वाक्यों को जोड़ रहा है।
रमेश या कामेश गए।
आंधी आई और पानी बरसा ।
मैं जाना चाहता था, परन्तु जा नहीं सका।
4..विस्मयादिबोधक – जिन अव्यय पदों से हर्ष या दुख , आश्चर्य , तिरस्कार, अनुमोदन , स्वीकार आदि भाव का बोध हो उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं ।
आश्चर्यबोधक..क्या!, सच!, ऐं! ओ हो!
हर्ष बोधक… शाबाश, धन्य, अहा!, वाह!
शोकबोधक..हाय!,उफ़्!बाप रे!
इच्छा बोधक..जय हो, आशिष
घृणा बोधक.. छिः! ,धिक्!, राम-राम,
अनुमोदन.. ठीक , अच्छा , भला
सम्बोधन सूचक.. हे !, अरे! , भो , ऐ
नोट..विस्मयादि बोधक अव्यय के बाद विस्मयसूचक चिन्ह् (!) का प्रयोग होता है।
जैसे ..
वाह ! हम मैच जीत गए। (हर्ष सूचक)
शाबाश! परीक्षा में तुमने बहुत अच्छा किया ।
निपात ...
ऐसे अव्यय जो वाक्य में किसी शब्द के साथ आकर उसके अर्थ को विशेष बल प्रदान करते हैं उन्हें निपात कहते हैं।
प्रमुख निपात..
हां , जी , जी हां (स्वीकार्य निपात)
क्या , काश , कि (विस्मयादि बोधक)
तक , भर (सीमा बोधक)
यह बस नोएडा तक जाएगी।
कोमल जीवन भर पति से अपमानित होती रही ।
मत ( निषेध )
वहां मत जाओ।
झूठ मत बोलो। फूल मत तोडो।
नहीं , न, जी नहीं (नकारार्थक )
मैं आज नहीं आ सकता।
क्या ? ( प्रश्न बोधक)
जैसे.. क्या तुमने पौधों को पानी दिया?
सा (तुलना बोधक)
शकुन्तला पुष्प सी कोमल है।
ठीक, लगभग , करीब , तकरीबन (अवधारणा बोधक)
जी (आदरबोधक)
गुरु जी को मेरा प्रणाम है।
तो , ही, भी , तक , ( बल दायक )
कितनी भी मुसीबत आये, मैं सत्य मार्ग पर ही चलूंगी।
वाक्य में प्रयोग ..
मुझे मात्र सौ रुपए दीजिए।
उसने राम को केवल एक रोटी दिया।
आजकल भी वह सत्य को नहीं छोड़ता है।
निपात किसे कहते हैं…