शानच् प्रत्यय वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्यय है। यह प्रत्यय “होता हुआ" इस अर्थ में प्रयुक्त होता है, और आत्मनेपद धातुओं के साथ इसका प्रयोग होता है।
शतृ और शानच् दोनो एक ही अर्थ में प्रयोग किये जाते हैं, परन्तु दोनों में यह अन्तर है, कि शतृ प्रत्यय परस्मैपद धातुओं के साथ और शानच् प्रत्यय आत्मनै पद धातुओं के साथ प्रयोग किया जाता है।
शानच् से बने शब्द विशेषण बन जाते हैं, और तीन वचनो में प्रयोग किये जाते हैं।
शानच् का धातु के साथ प्रयोग करने पर शानच् का आन जुड़ता है, श् और च् का लोप हो जाता है, अर्थात वह नहीं जुड़ता है।
इस प्रकार पुलिङ्ग् में आन स्त्रिलिङ्ग् में आना तथा नपुन्सक् लिङ्ग में आनम् जुड़ता है।
धातु के अन्तिम अक्षर के बाद तथा आन् के पहले मुक् का म् जुड़ता है।
जैसे..
पुलिन्ग में.. लभ् + शानच् > आन्
लभ् +मुक् का > म्
लभ् + म् + आन् = लभमान्
स्त्रीलिंग में..आन् के बाद टाप् प्रत्यय का आ जुड़ कर लाभमाना रूप बनेगा .. जैसे..
लभ् + शानच् > आन
लभ् + मुक् > म् + आन्
लभ् + म् + आन् + टाप् > आ
= लभमाना
सेव् + शानच् = सेवमाना
नपुन्सक् लिङ्ग में धातु से आनम् जुड़ता है।
लभ् + म् + आनम् = लभमानम्
- यदि शानच् के पूर्व अकारान्त धातु रूप आये तो शानच् के आन के स्थान पर मान जुड़ता है।
- शानच् प्रत्यायन्त शब्द के लिङ्ग, वचन व विभक्ति विशेष्य के अनुसार चलेंगे।
*इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप पुलिंग में राम की तरह , स्त्रीलिंग में लता तथा नपुंसक लिंग में फल के समान रुप बनते हैं।
शतृ प्रत्यय
शानच् के साथ धातुओं के विभिन्न लिङ्गों में बने शब्द…
धातु | पुलिन्ग | स्त्रिलिङ्ग् | नपुन्सक् लिङ्ग |
प्र काश | प्रकशमानः | प्रकशमाना | प्रकशमानम् |
युध् | युध्यमानः | युध्यमाना | युध्यमानम् |
याच् | याचमानः | याचमाना | याचमानम् |
रम् | रममाणः | रममाणा | रममाणम् |
*द्युत् | द्युतमानः | द्युतमाना | द्युतमानम् |
दा | दीयमानः | दीयमाना | दीयमानम् |
दीप् | दीपमानः | दीपमाना | दीपमानम् |
*आस् | आसीन: | आसीना | आसीनम् |
त्वर् | त्वरमाणः | त्वरमाणा | त्वरमाणम् |
दय् | दयमानः | दयमाना | दयमानम् |
*नी | नयमानः | नयमाना | नयमानम् |
*पू | पवमानः | पवमाना | पवमानम् |
मन् | मन्यमानः | मन्यमाना | मन्यमानम् |
यज् | यजमानः | यजमाना | यजमानम् |
*वृत् | वर्तमानः | वर्तमाना | वर्तमानम् |
व्यथ् | व्यथमानः | व्यथमाना | व्यथमानम् |
*शी | शीयमानः | शीयमाना | शीयमानम् |
ऊपर दी गई तालिका में कुछ् धातुओं के पास * लगा हुआ है।उन धातुओं से शानच् लगने के बाद जो परिवर्तन निम्नलिखित कारण से हुआ है…
- *आस् धातु के बाद शानच् आने पर शानच् के आन् को ईन् हो जाता है।
- वृध्, वृत् धातु के ऋ को गुण संधि के कारण अर् में बदल गया है।
- *मुद् तथा द्युत् धातु में उ के स्थान पर गुण हो कर ओ हो गया है।
- शी धातु में यण संधि के कारण ई के स्थान पर य् हो गया।
शानच् प्रत्यय वाले शब्द का वाक्य में प्रयोग..
1. सैनिकाः युध्मानाः देशं रक्षन्ति।
सैनिक युद्ध करते हुए देश की रक्षा करते हैं।
2.प्रकशमानैः नक्षत्रैः आकाशः शोभते।
चमकते हुए नक्षत्रों से आकाश शोभित होता है।
3.वन्दमाना बालिकया गीतं गीयते।
वन्दना करती हुई बालिका के द्वारा गीत गाया जाता है।
4.कम्पमानेभ्यः वृक्षेभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
हिलते हुए वृक्षों से फूल गिरते हैं।
5.माता शयानं बालकं रक्षति। माता सोते हुए बालक की रक्षा करती है।
- यह प्रत्यय भी दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य करता है , जैसे..
दिलीपः गां सेवते। दिलीप गाय की सेवा करते हैं।
दिलीपः सिंहम् पश्यति। दिलीप सिंह को देखते हैं।
इस प्रत्यय के द्वारा यह दोनों वाक्य जुड़ कर इस प्रकार बनेगा….
गां सेवमानः दिलीपः सिंहम् पश्यति।
इसी प्रकार अन्य वाक्य..
- पुत्रः माता पितरौ सेवते। सः स्व कर्तव्यं निर्वहति।
मातापितरौ सेवमानः पुत्रः स्वकर्तव्यं निर्वहति।
- ते मोदन्ते। ते गायन्ति
मोदमानाः ते गायन्ति।
अन्य उदाहरण…
*कष्टं सहमानाः जनाः दुखिनः भवन्ति।
*मुदमाना रमा नृत्यति।
*तस्याः वर्धमाना प्रगतिः पितरं हृष्यति।
*प्रयत्मानाः जनाः साफल्यं आप्नुवन्ति।
प्रयत्न करते हुए मनुष्य सफलता प्राप्त करते हैं।
*फलम् लभमाना बाला प्रसीदति।
*किम् रोचमाणाः ते प्रसीदन्ति।
*त्वम् चल्यमानं वाहनं पश्य।
तुम चलते हुए वाहन को देखो।
*धनम् लभमानः ( लभ् +शानच् ) भिक्षुकः आशीर्वचनानि यच्छति।
धन प्राप्त करता हुआ भिक्षुक आशीर्वाद देता है।
*सत्यं ब्रूयमानाः नराः सम्मानम् प्राप्नुवन्ति।
सत्य बोलते हुए नर सम्मान प्राप्त करते हैं।
*पुरस्कारं लभमानः छात्रः प्रसन्नः भवति।
पुरस्कार प्राप्त करता हुआ छात्र प्रसन्न होता है।
*दुखितान् जनान् सेवमानाः जनाः पुण्यं लभते।
दुखी लोगों की सेवा करते हुए मनुष्य पुण्य प्राप्त करते हैं।
*निरन्तरं वर्धमानेन प्रदुषणेन मानवजातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति।
*काल: सदैव गम्यमानः वर्तते।
समय सदा गतिशील होता है।
*देवं वन्दमानाः भक्ताः प्रसीदन्ति।
देव की वन्दना करते हुए भक्त प्रसन्न होते हैं।
नोट..आस् धातु के बाद शानच् आने पर शानच् के आन् को ईन् हो जाता है।
प्रश्न-उत्तर..
प्रश्न..शानच् प्रत्यय किस प्रकार का प्रत्यय है ?
उत्तर.. वर्त्मनकालिक कृदन्त प्रत्यय।
प्रश्न..इस प्रत्यय का प्रयोग किस अर्थ में होता है?
उत्तर..’होता हुआ ‘ इस अर्थ में।
प्रश्न..यह किस प्रकार की धातुओं के साथ प्रयुक्त होता है?
उत्तर..आत्मनेपद धातुओं के साथ।
प्रश्न…धातु के साथ प्रयुक्त होने पर शानच् का कितना भाग जुड़ता है?
उत्तर..शानच् का धातु के साथ प्रयोग करने पर शानच् का आन जुड़ता है, श् और च् का लोप हो जाता है, अर्थात वह नहीं जुड़ता है।
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क्त्वा प्रत्यय के लिये इसे पढिये.
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