न्याय दर्शन के अनुसार कारण क्या है..
तर्क संग्रह के अनुसार कारण क्या है? साधारण भाषा में कहें तो कारण अर्थात.. हेतु या वजह। जैसे…आप किस कारण से जा रहे हैं? आप क्यों यहां आये हैं…
वस्तुतः..कोई भी कार्य बिना कारण के नहीं हो सकता है । प्रत्येक कार्य के लिए कोई न कोई कारण अवश्य होता है, और कार्य,कारण का परिणाम होता है । तर्क संग्रह में कारण की परिभाषा इस प्रकार की गई है ..
कार्यनियतपूर्ववृत्तिः कारणम्।
अर्थात..कार्य की उत्पत्ति से पूर्व नियत =(निश्चित )रूप से उपस्थित रहने वाला तत्व, कारण कहलाता है।
कार्य की उत्पत्ति से पूर्व क्षण में नियत रूप से रहने वाला तत्व कारण कहलाता है। अर्थात..कारण का किसी वस्तु या क्रिया से पूर्व रुप (पहले से) संबंध होता है ।
परन्तु केवल कार्य के पूर्व में रहने से वह कारण नहीं हो सकता है, कार्य के पूर्व में नियत रूप से रहने के साथ -साथ उसे कार्य के निष्पादन में साक्षात सहयोगी होना चाहिये।
जैसे.. जैसे घट बनाने वाले कुम्हार के पास उसका पिता भी बैठा हो तो वह घट कारण नहीं हो सकता है। इसी प्रकार मिट्टी ढोने वाला रासभ =गधा भी कारण नहीं हो सकता।
उत्पत्ति से पूर्व इसलिये कहा गया है क्योंकि दोनों एक साथ नहीं हो सकते हैं एक पूर्ववर्ती होता है और वह कारण है। दूसरा पश्चात् वर्ती होता है और वह कार्य है।
जैसे.. घट का कारण मृत्तिका ( मिट्टी)।मिट्टी घट बनने से पूर्व विद्यमान रहती है तथा घट मिट्टी को घड़े के रूप में दिये गये आकार रूपी कार्य का परिणाम है।
कारण के तीन भेद बताये गये हैं..
1.. समवायि कारण
2.. असमवायि कारण
3.. निमित्त कारण
1..समवायि कारण..
समवायि का शाब्दिक अर्थ है….अवयव या अंग ।समवाय संबन्ध ऐसा संबंध है जिसके बिना वस्तु का अस्तित्व ही न रह सके ,अतः जिसके बिना वस्तु का अस्तित्व ही न रह सके, वह उस वस्तु का समवायि कारण है। यह द्रव्य और गुण के बीच का अविभाज्य संबन्ध होता है।
इसके बारे में कहा गया है…
यत् समवेतं कार्यमुत्पद्यते तत्समवायि कारणम्। यथा तन्तवः पटस्य, पटश्च स्वगतरूपादेः।
अर्थात जिसमें समवाय संबध से रह कर कार्य उत्पन्न होता है, उसे समवायि कारण कहते हैं। जैसे तन्तु पट का और पट, पट के रूपादि का समवायि कारण है।
इसका अभिप्राय है .. कि कपड़ा बनाने हेतु तंतु अर्थात धागा अनिवार्य है । बिना धागा के कपड़ा नहीं बनाया जा सकता है।
तन्तुओं में समवाय संबन्ध से संबद्ध हो कर पट कार्य उत्पन्न होता है इसलिये तन्तु ( धागा) पट का समवायि कारण है। इसी प्रकार समवाय समबन्ध से संबद्ध हो कर पटरूप उत्पन्न होता है, इसलिये पट, पट रूप का समवायि कारण है।
इसी प्रकार से कपाल में समवाय संबन्ध से संबद्ध हो कर घटकार्य उत्पन्न होता है, इसलिये कपाल घट कार्य का समवायि कारण है। इसी प्रकार घट में समवाय संबन्ध से संबद्ध हो कर घट रूप उत्पन्न होता है, इसलिये घट, घटरूप का समवायि कारण है।
नोट.. समवायि कारण द्रव्य ही होता है। समवाय संबन्ध नित्य होता है।
असमवायि कारण….
असमवायि कारण वह कारण है जो द्रव्य नहीं है बल्कि गुण है। इसके बारे में कहा गया है…
कार्येण कारणेन वा सहैकस्मिन्नर्थे समवेतं यत्कारणम् असमवायि कारणम्। यथा तन्तुसंयोगः पटस्य, तन्तुरूपं पटरूपस्य।
कार्य अथवा कारण के साथ-साथ एक पदार्थ में (अधिकरण में )समवाय संबन्ध से वर्तमान होता हुआ अर्थात रहने वाला जो कारण है, वह असमवायि कारण है।
जैसे.. तन्तु (धागे ) का संयोग(मेल /combination )पट (कपड़ा)का असमवायि कारण है,और तन्तु रूप पट रूप का असमवायि कारण है।
तन्तु ( धागे )का रंग, पट के रंग को बताता है, जैसा तन्तु वैसा पट। धागे का रंग कपडे के रंग के बारे में बताता है। हम कह सकते हैं कि असमवायि कारण, समवायि कारण का गुण है।
कार्य अथवा कारण के साथ समवाय संबन्ध से वर्तमान होता हुआ… यह इस प्रकार स्पष्ट होगा कि..घट का रंग मिट्टी के रंग के कारण होता है।
और मिट्टी का यह रंग मिट्टी के साथ समवाय संबन्ध से रहता है, अतः मिट्टी का रंग घट का असमवायि कारण है और यह गैर अन्तर्निहित कारण है।
नोट…असमवायि कारण सदा गुण या क्रिया होती है।
नोट..संयोग अनित्य और है तथा वाह्य संबन्ध है। जैसे.. लेखनी का कर्गद (कागज) के साथ।अतः हम यह कह सकते हैं कि असमवायि कारण अन्तर्निहित कारण नहीं है।
निमित्त कारण…
निमित्त कारण अर्थात साधन भूत कारण। वह,जिसकी सहायता से या कर्तृत्व से कोई वस्तु बने। अतः..
निमित्त वह शक्ति होती है जो किसी वस्तु को कुशल बनाने में सहायता करती है, तथा वस्तु के प्रभाव को उत्पन्न करती है।निमित्त कारण के बारे में कहा गया है कि..
तदुभयभिन्न कारणम् निमित्त कारणम्..। यथा तुरीवेमादिकं पटस्य।
समवायि और असमावायि से भिन्न हो कर जो कारण है वह निमित्त कारण है। बुनकर पट का निमित्त कारण है। निमित्त कारण में सहयोगी कारण भी सम्मिलित रहते हैं
जैसे तुरी (सूत्र वेष्टन=लपेटने की नली )वेमादि (वाय दण्ड .. जिससे चाक चलाया जाता है )पट के निमित्त कारण हैं। कपड़ा बनाने के लिये तन्तु अर्थात धागा समवायि कारण है, बिना तन्तु के पट नहीं हो सकता परन्तु तन्तु को ठीक ढंग से रखने के लिये तुरी की आवश्यकता होती है, तन्तु को पट रूप में परिवर्तित करने के लिये बुनकर होता है बुनकर के साथ करघा।अतः यह पट का निमित्त कारण है।
इसी प्रकार घड़ा बनने का निमित्त कारण कुम्हार , चाक, दण्ड, सूत्र आदि।
घड़ा बनने के लिये मिट्टी समवायि है, परन्तु बिना कुम्हार के वह आकार नहीं ले सकता है अर्थात कुम्हार ही घड़े को आकार देता है । कुम्हार भी, बिना चाक के आकार नहीं दे सकता। चाक को घुमाने के लिये दण्ड की आवश्यकता होती है। अतः ये सभी घड़ा बनाने के लिये आवश्यक हैं। निमित्त कारण में सहयोगी कारण भी सम्मिलित रहते हैं।
अतः यह समझना चाहिये कि मिट्टी और घट तथा तन्तु और पट में समवाय संबन्ध है अतः मिट्टी घट का तथा तन्तु पट का समवायि कारण है। तन्तु का रूप पट रूप का.. असमवायि कारण है। बुनकर /जुलाहा पट का निमित्त कारण है क्योंकि बुनकर ही तन्तु को पट का रूप देता है, और इस कार्य में तुरी वेष्टन करघा आदि सहयोगी वस्तुएं जो सहायक हैं वे भी निमित्त कारण हैं।
प्रश्न -उत्तर…
1..समवाय संबन्ध क्या है?
उत्तर.. ऐसा संबन्ध जिसके बिना वस्तुकी सत्ता ही न रह सके।
2.. समवाय कारण क्या है?
उत्तर..जिसमें समवाय संबन्ध से रह कर कार्य उत्पन्न होता है।
3.. निमित्त कारण क्या होता है ?
उत्तर…वह कारण जिसकी सहायता से या कर्तृत्व से कोई वस्तु बनता है।
4..समवाय संबन्ध किसमें पाया जाता है?
उत्तर.. समवाय संबन्ध गुण -गुणी, अवयव -अवयवी, जाति -व्यक्ति, क्रिया -क्रियावान, तथा विशेष नित्य द्रव्यों में पाया जाता है।
5..अन्यथा सिद्ध क्या होता है?
उत्तर.. किसी अयथार्थ या अप्रत्यक्ष कारण के आधार पर कोई बात सिद्ध करना अन्यथासिद्ध कहा जाता है। जैसे.. किसी भी स्थान पर कुम्हार दण्डे या रासभ मो देख कर यह माना लेना या सिद्ध करना कि वहां घट है।