भूत काल के कृत् प्रत्ययों में संस्कृत में मुख्यतःदो प्रत्यय हैं क्त तथा क्तवतु।
क्त प्रत्यय भूत कालिक कृदन्त प्रत्यय है।
क्त को निष्ठा कहते हैं ,जिसका संस्कृत व्याकरण में अर्थ होता है समाप्ति।अर्थात कार्य की समाप्ति।
जैसे..तेन् पठितं । उसके द्वारा पढ़ा गया। अर्थात पढ़ने का कार्य समाप्त हो गया ।
जब हम भूत काल वाले कर्तृ वाच्य को भूत काल कर्म वाच्य में बदलते हैं तब क्त प्रत्यय का प्रयोग होता है।
अतः यह प्रत्यय सभी धातुओं के साथ भूतकाल का अर्थ बताने के लिये प्रयोग किया जाता है।
क्त प्रत्यय के प्रयोग के नियम
*इस प्रत्यय का प्रयोग भूत काल के अर्थ में कर्म वाच्य और भाव वाच्य की क्रिया के साथ ही होता है।
*धातु के साथ प्रयुक्त होने पर इस प्रत्यय का केवल त जुड़ता है। क् का लोप् हो जाता है।
धातु + क्त > त = पठ् + क्त >त पठितः
*धातु के साथ क्त लगने के बाद पुलिंग में त:, स्त्री लिंग में ता, तथा नपुंसक लिंग में तम् लगता है।
*सेट् धातु के साथ , प्रत्यय के पहले इ जुड़ता है। जैसे..
पठ् + इ + त् = पठित्
नोट.. वे धातु जिनके लट् और लृट् लकार में रूप नहीं बदलते हैं, सेट् धातुएं होती हैं।
जैसे..पठ् धातु लट् लकार में पठति , तथा लृट् लकार में पठिष्यति रहता है।
*अनिट् धातु के साथ् प्रत्यय के पहले इ नहीं जुड़ता है।
- अनिट् धातु में लट् और लृट् लकार अलग होते हैं जैसे..
- दृश् धातु लट् लकार में पश्यति तथा लृट् में द्रक्ष्यति रूप बनता है।
धातु + क्त > त्
नी + क्त = नीतः
दृश् +क्त = दृष्टः
*यदि धातु का अन्तिम अक्षर न या म् हो तो न् / म् का लोप हो जाता हैऔर इ का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे..गम् + क्त = गतः
नम् + क्त = नत:
यहां धातु के अन्त में म् है अतः म् का लोप हो गया है, तथा इ का प्रयोग नहीं हुआ।
*क्त प्रत्यय वाले सभी शब्दों के रूप पुलिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग, तीनों लिंगों में चलते हैं।
* पुलिंग में राम,स्त्रीलिंग में रमा, तथा नपुंसक लिंग में फल के समान रूप बनते हैं।जैसे..
पुलिंग .. पठितः पठितौ पठिताः
स्त्रीलिंग …. पठिता पठिते पठिताः
नपुंसक लिंग …. पठितं पठिते पठितानि
*इस प्रत्यय के प्रयोग में कर्ता तृतीया विभक्ति में परिवर्तित हो जाता है
*वाक्य में यदि कर्म हो तो कर्म प्रथमा विभक्ति में बदल जाता है।
नोट..जब कर्म प्रथमा में बदल जाता है, तो वह कर्ता हो जाता है,और इसके अनुसार ही क्रिया के लिङ्ग और वचन होते हैं । अर्थात..
कर्ता.. तृतीया विभक्ति में हो जाता है।
कर्म… प्रथमा विभक्ति में तथा
क्रिया…कर्म के अनुसार होती है। जैसे.
अहं ग्रन्थं अपठम्.. याः वाक्य कर्तृ वाच्य भूत
मया ग्रन्थः पठितः। मेरे द्वारा ग्रन्थ पढ़ा गया। इस वाक्य में मया (मेरे द्वारा) तृतीया विभक्ति में है।
ग्रन्थः पुलिंग है, तथा प्रथमा विभक्ति में है, अतः पठितः क्रिया भी ग्रंथः के अनुसार प्रथमा विभक्ति, पुलिंग में है।
रामेण पुस्तिका पठिता। राम द्वारा पुस्तिका पढ़ी गई।
यहां पुस्तिका स्त्रीलिङ्ग है ,अतः पठिता भी स्त्रीलिङ्ग है।
सीतया पुस्तकं पठितं। सीता द्वारा पुस्तक पढ़ी गई।
इस वाक्य में कर्म (पुस्तकं)नपुंसक लिंग में है अतः’ पठितं ‘ यह क्रिया भी नपुंसक लिंग में है।
शिक्षकः बलिकाम् अपाठयत्। यह वाक्य में क्त प्रत्यय के प्रयोग द्वारा इस प्रकार बनेगा…
शिक्षकेन बालिका पाठिता।
इस वाक्य में बालिका प्रथमा विभक्ति में बदल गया तथा स्त्रीलिंग है ,अतः क्रिया भी पाठिता स्त्रीलिंग में हुई।
इसी प्रकार अन्य वाक्यों में भी समझना चाहिए…
सकर्मक धातु के साथ क्त प्रत्यय का प्रयोग..
- अहम् ग्रामं अगच्छम्।
- मया ग्रामः गतः।
- रमा लेखं अलिखत्।
- रमया लेखः लिखितः।
- कमला पाठं अपठत् ।
- कमलया पाठ: पठितः।
- सः पत्रम् अलिखत्।
- तया पत्रम् लिखितं।
- बलिकभिः पुस्तकं लिखितं।
ईश्वरेण वेदः कृता।
व्यासेन गीता लिखिता।
अन्य उदाहरण…
- मया गानम् श्रुतम्।
- अस्माभिः कृष्णः दृष्टः।
- रामेण रावणः हतः।
- रक्षितेन व्याघ्रः दृष्टः।
- जनकेन ग्रामः रक्षितः।
- वानरेण फले त्रोटिते।
- ऋषिणा पूजा कृता।
- छात्रेन् सुलेखः लिखितः।
- त्वया पृष्टस्य प्रश्नस्य अहम् समर्थकः अस्मि।
अकर्मक धातु के साथ् क्त का प्रयोग..
*जब् क्त अकर्मक धातु के साथ भाव वाच्य में प्रयोग किया जाता है, तो भी कर्ता तृतीया विभक्ति में होता है।
अकर्मक वाक्य में क्त प्रत्यय के साथ क्रिया सदा नपुंसक लिंग एक वचन में ही रहती है।कर्ता के कारण क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
जैसे.बालकेन् हसितं।
बालकैः हसितं।
बालिकया हसितं।
फलेन् पतितं।
त्वया सुप्तं।
मया स्नाता।
लेखनी पतितं।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है, कि कर्ता के एक वचन, बहुवचन, पुलिंग, स्त्रीलिंग में होने का क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं हुआ।यह सदा नपुंसक लिङ्ग एक वचन में रही।
अकर्मक धातु के साथ कर्तृ वाच्य में क्त का प्रयोग
क्त,अकर्मक धातु के साथ कर्तृ वाच्य में भी प्रयुक्त होता है। कर्तृ वाच्य में कर्ता में प्रथमा होती है तथा क्रिया के लिङ्ग और वचन कर्ता के अनुसार होते हैं।
जैसे… बालकः हसितः। (बालक हंसा)
बालकाः हसिताः। ( बालक हंसे)
बालिका हसिता। ( लड़की हंसी)
बालः प्रबुद्धः।
लेखनी पतिता।
उपरोक्त वाक्यों में कर्ता के लिंग ,वचन के अनुसार क्रिया में परिवर्तन हुआ।
इस प्रकार क्त प्रत्यय का अकर्मक धातुओं साथ के दो प्रकार के रूप तथा प्रयोग होते हैं।
1..बालकेन हसितं।
2.बालकः हसितः।
3..त्वम् सुप्तः।
4..त्वया सुप्तं।
गमनार्थक अर्थात जाने के अर्थ वाली धातुओं के साथ भी यह प्रत्यय कर्म वाच्य तथा कर्तृ वाच्य दोनों में ही प्रयोग किया जाता है। जैसे..
सः गतः ( कर्तृ वाच्य )
तेन् गतं ( कर्म वाच्य )
अनिट् (इट् >इ से रहित )धातुओं के साथ बने हुए रूप…
धातु + क्त | पुलिन्ग | स्त्रीलिंग | नपुन्सक लिंग |
अस् | भूतः | भूता | भूतं |
आप् | आप्तः | आप्ता | आप्तं |
अद् | जग्धः | जग्धा | जग्धम् |
इष् | इष्टः | इष्टा | इष्टं |
कृ | कृतः | कृता | कृतं |
क्री | क्रीतः | क्रीता | क्रीतं |
कृष् | कृष्टः | कृष्टा | कृष्टम् |
गै | गीतः | गीता | गीतं |
गम् | गतः | गता | गतं |
घ्रा | घ्रातः/ घ्राणः | घ्राता / घ्राणा | घ्रातम्/ घ्राणं |
चि | चितः | चिता | चितं |
छिद् | छिन्न: | छिन्ना | छिन्नम् |
जन् | जातः | जाता | जातं |
जि | जितः | जिता | जितं |
पच् | पक्वः | पक्वा | पक्वम् |
जुष् | जुष्टः | जुष्टा | जुष्टम् |
ज्ञा | ज्ञातः | ज्ञाता | ज्ञातं |
तुद् | तुन्नः | तुन्ना | तुन्नं |
तृ | तीर्णः | तीर्णा | तीर्णम् |
तुष् | तुष्टः | तुष्टा | तुष्टम् |
तृप् | तृप्तः | तृप्ता | तृप्तम् |
त्यज् | त्यक्तः | त्यक्ता | त्यक्तम् |
त्रै | त्रातः | त्राता | त्रातं |
दह् | दग्धः | दग्धा | दग्धम् |
दा | दत्तः | दत्ता | दत्तं |
दुह् | दुग्धः | दुग्धा | दुग्धं |
दृश् | दृष्टः | दृष्टा | दृष्टं9 |
दिव् | द्यूतः/ द्यूनः | द्यूता /द्यूना | द्यूतं /द्यूनं |
धा | हितः | हिता | हितं |
धृ | धृतः | धृता | धृतं |
ध्यै | ध्यातः | ध्याता | ध्यातं |
नम् | नतः | नता | नतम् |
नश् | नष्टः | नष्टा | नष्टम् |
नी | नीतः | नीता | नीतम् |
पा | पीतः | पीता | पीतम् |
प्रच्छ् | पृष्टः | पृष्टाः | पृष्टम् |
ब्रू | उक्तः | उक्ता | उक्तम् |
बन्ध् | बद्धः | बद्धा | बद्धम् |
बुध् | बुद्धः | बुद्धा | बुद्धम् |
भू | भूतः | भूता | भूतम् |
भी | भीतः | भीता | भीतम् |
भुज् | भुक्तः | भुक्ता | भुक्तम् |
मन् | मतः | मता | मतम् |
मुच् | मुक्तः | मुक्ता | मुक्तं |
मृ | मृतः | मृता | मृतम् |
या | यातः | याता | यातम् |
युध् | युद्धः | युद्धा | युद्धम् |
युज् | युक्तः | युक्ता | युक्तम् |
यज् | इष्टः | इष्टा | इष्टम् |
आ +रभ् | आरब्धः | आरब्धा | आरब्धम् |
लभ् | लब्धः | लब्धा | लब्धम् |
वच् | उक्तः | उक्ता | उक्तम् |
शक् | शक्तः | शक्ता | शक्तम् |
शुष् | शुष्कः | शुष्का | शुष्कम् |
श्रम् | श्रान्तः | श्रान्ता | श्रान्तम् |
शास् | शिष्टः | शिष्टा | शिष्टम् |
श्रु | श्रुतः | श्रुता | श्रुतम् |
सह् | सोढः | सोढा | सोढम् |
स्तु | स्तुतः | स्तुता | स्तुतम् |
स्ना | स्नातः | स्नाता | स्नातम् |
स्मृ | स्मृतः | स्मृता | स्मृतम् |
स्पृश् | स्पृष्टः | स्पृष्टा | स्पृष्टम् |
स्वप् | सुप्तः | सुप्ता | सुप्तम् |
हन् | हतः | हता | हतम् |
हृ | हृतः | हृता | हृतम् |
हा | हीनः | हीना | हीनम् |
आ +ह्वे | आहूतः | आहूता | आहूतम् |
भ्रम् | भ्रान्तः | भ्रान्ता | भ्रान्तम् |
सेट् धातुओं के साथ क्त प्रत्यय से बने शब्द…
धातु +क्त प्रत्यय | पुलिङ्ग् | स्त्रिलिङ्ग् | नपुंसक लिङ्ग् |
अर्च् | अर्चितः | अर्चिता | अर्चितम् |
ईक्ष् | ईक्षितः | ईक्षिता | ईक्षितम् |
कथ् | कथितः | कथिता | कथितम् |
कम्प् | कम्पितः | कम्पिता | कम्पितम् |
कुप् | कुपितः | कुपिता | कुपितम् |
क्रीड् | क्रीडितः | क्रीडिता | क्रीडितम् |
खाद् | खादितः | खादिता | खादितम् |
खण्ड् | खण्डितः | खण्डिता | खण्डितम् |
चल् | चलितः | चलिता | चलितम् |
चिन्त् | चिन्तितः | चिन्तिता | चिन्तितम् |
चुर् | चोरितः | चोरिता | चोरितम् |
जीव् | जीवितः | जीविता | जीवितम् |
ताड् | ताडितः | ताडिता | ताडितम् |
तुल् | तोलितः | तोलिता | तोलितम् |
दण्ड् | दण्डितः | दाण्डिता | दण्डितम् |
धाव् | धावितः | धविता | धावितम् |
निन्द् | निन्दितः | निन्दिता | निन्दितम् |
पठ् | पठितः | पठिता | पठितम् |
पत् | पतितः | पतिता | पतितम् |
पाल् | पालितः | पालिता | पालितम् |
पूज् | पूजितः | पूजिता | पूजितम् |
बाध् | बाधितः | बाधिता | बाधितम् |
भक्ष् | भक्षितः | भक्षिता | भक्षितम् |
भाष् | भाषितः | भाषिता | भाषितम् |
भूष् | भूषितः | भूषिता | भूषितम् |
मुष् | मुषितः | मुषिता | मुषितम् |
मिल् | मिलितः | मिलिता | मिलितम् |
याच् | याचितः | याचिता | याचितम् |
रक्ष् | रक्षितः | रक्षिता | रक्षितम् |
रच् | रचितः | रचिता | रचितम् |
रुद् | रुदितः | रुदिता | रुदितम् |
लिख् | लिखितः | लिखिता | लिखितम् |
वद् | उदितः | उदिता | उदितम् |
वन्द् | वन्दितः | वन्दिता | वन्दितम् |
वस् | उषितः | उषिता | उषितम् |
विद् | विदितः | विदिता | विदितम् |
वेप् | वेपितः | वेपिता | वेपितम् |
शंक् | शंकितः | शंकिता | शंकितम् |
शिक्ष् | शिक्षितः | शिक्षिता | शिक्षितम् |
शी | शयितः | शयिता | शयितम् |
शुच् | शोचितः | शोचिता | शोचितम् |
शुभ् | शोभितः | शोभिता | शोभितम् |
सेव् | सेवितः | सेविता | सेवितम् |
स्था | स्थितः | स्थिता | स्थितम् |
हस् | हसितः | हसिता | हसितम् |
क्त प्रत्ययान्त शब्द विशेषण के रूप में भी प्रयोग किये जाते हैं। तथा इनके रूप अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं।
जैसे… पक्वानि ( पच्+ क्त) आम्राणि आनय।
अनुमतः ( अनु +मन् +क्त )पुत्रः राजसभां अगच्छत्।
पठितं पुस्तकं।
खादितं भोजनं।
भीता कन्या।
श्रुता गीता।
पृष्टः प्रश्नः।
क्त्वा प्रत्यय के लिये..
Excellent explanation