माहेश्वर सूत्र क्या हैं../ Maheshwar sutra kya hain… प्रत्याहार कैसे बनाते हैं..

माहेश्वर सूत्र का परिचय…

माहेश्वर सूत्र आचार्य पाणिनि द्वारा रचित “अष्टाध्यायी “में वर्णित हैं। ये संख्या में १४ हैं।ये सूत्र पाणिनीय व्याकरण की नींव हैं।

माहेश्वर सूत्र संस्कृत व्याकरण का मूल आधार है। जिस प्रकार हर भाषा की वर्णमाला होती है, जिसमें उस भाषा के वर्ण एक निश्चित व व्यवस्थित क्रम में होते हैं, उसी प्रकार संस्कृत भाषा में वर्ण माहेश्वर सूत्र के रुप में हैं। एक विशेष क्रम में व्यवस्थित हैं। इन सूत्रों में संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले वर्णों को एक विशेष क्रम में प्रस्तुत किया गया है, और व्याकरण शास्त्र के विवेचन में जहां कहीं भी वर्ण समूहों के प्रयोग की या कुछ वर्णों के प्रयोग की आवश्यकता पड़ी, उनका प्रत्याहार के रुप में अर्थात् संक्षिप्त रूप में प्रयोग किया गया है।

जैसे  अक् यह  प्रत्याहार… अ, इ,उ, ऋ, लृ  ” इन वर्णों का बोधक है।

इन सूत्रों को माहेश्वर सूत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि….कहा जाता है, कि आचार्य पाणिनी की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने १४ बार डमरू बजाया । उस डमरू की ध्वनि से आचार्य पाणिनी ने इन सूत्रों को प्राप्त किया और लिखा।इस बारे में एक श्लोक भी है…

नृत्तावसाने नटराजराजो ननादिढक्काम् नवपन्चवारम्।

उद्धर्तुकामो सनकादिदानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।

अर्थात …. नटों के राजा भगवान शिव ने अपने नृत्य के अवसान (समाप्ति)पर सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना की पूर्ति के लिए चौदह बार डमरू बजाया।जिससे यह शिव सूत्रजाल ( वर्णमाला) प्रकट (प्राप्त) हुई।

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माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र भी कहते हैं। ये संख्या में १४ हैं जो इस प्रकार हैं…..

माहेश्वर सूत्र के नाम

१.. अ, इ ,उ ,ण्।
२… ॠ ,ॡ ,क्,।
३… ए, ओ ,ङ्।
४… ऐ ,औ, च्।
५… ह, य ,व ,र ,ट्।
६… ल ,ण्
७… ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म्।
८… झ, भ ,ञ्।
९… घ, ढ ,ध ,iष्।
१०… ज, ब, ग ,ड ,द, iश्।
११… ख ,फ ,,छ ,ठ ,थ,च, ट, त, व्
११… क, प ,य्।
१३… श ,ष ,स ,र्।
१४… ह ,ल्।

उपरोक्त सूत्रों से प्रत्याहार बनाए जाते हैं। व्याकरण शास्त्र में अल्प (थोड़ा ही )प्रयत्न हेतु प्रत्याहारों की अवश्यकता होती है।

प्रत्याहार क्या है… प्रत्याहार कैसे बनाते हैं…. Pratyahar kya hai.. Pratyahar kaise banate hain

प्रत्याहार, अर्थात -वर्ण संक्षिप्तिकरण

“वर्णानाम् संक्षिप्तिकरम् प्रत्याहारः”

विभिन्न वर्ण समूहों के अभिप्सित-(इच्छानुरूप, आवश्यकतानुसार)रूप को संक्षेप में ग्रहणकरने की पद्धति या संकेत, प्रत्याहार कहा जाता है।

जैसे…अच्, अल्, हल्, झल्  आदि।

व्यञ्जन संधि का एक सूत्र है… झलाम् जशो अन्ते.. अर्थात पद के अंत में यदि झल् वर्ण आये, तो संधि करने पर झल् के स्थान पर जश् हो जाता है। यदि झल् , जश् आदि प्रत्याहारों का प्रयोग नहीं किया जाता, तो बहुत सारे वर्णों का प्रयोग करना पड़ता ,और पूरे व्याकरण शास्त्र में अनेकों स्थान पर अत्यधिक प्रयत्न करना पड़ता।

अर्थात प्रत्याहार का अर्थ है, विभिन्न वर्ण समूहों का संक्षेप में उल्लेख करना। जिससे कम प्रयत्न करना पड़े।

उपरोक्त माहेश्वर सूत्रों में प्रत्येक सूत्र का अंतिम वर्ण इत् संज्ञा वाला है। ( ण् क् ङ्,च् आदि )अर्थात् प्रत्याहार बनाने में उन इत् संज्ञा वाले वर्ण का प्रयोग नहीं किया जाता है।

आचार्य पाणिनी ने“आदिरन्त्येन संहिता” इस सूत्र का निर्माण कर वर्ण समुदायों का संक्षिप्त रूप निश्चित  कर दिया है। जब हम किसी प्रत्याहार का उच्चारण करते हैं,तो वह आदि अर्थात पहले वर्ण के साथ अंतिम इत् संज्ञा वाले वर्ण के बीच में आने वाले सभी वर्णों का बोध कराता है, और बीच में आये हुए इत् संज्ञा वाले व्यंजन इसमें नहीं गिने जाते हैं।

माहेश्वर सूत्र से प्रत्याहार कैसे  बनते हैं….

माहेश्वर सूत्रों में से किसी भी  सूत्र का कोई वर्ण लेकर उसको आगे के किसी इत् संज्ञा वाले वर्ण के पहले जोड़ दिया जाए तो प्रत्याहार बन जाता है। और यह उस पूर्व वर्ण का तथा अंतिम(इत् संज्ञक ) वर्ण के बीच में आने वाले सभी वर्णों का बोधक होता है। परंतु…..

इस क्रम में प्रत्येक सूत्र के अंतिम इत संज्ञा वाले वर्ण की गणना नहीं की जाती है।

जैसे…. अच् प्रत्याहार…यह अ वर्ण से आरंभ हो कर च् वर्ण पर समाप्त हो रहा है

अब हम यह देखेंगे कि माहेश्वर सूत्रों में अच्

प्रत्याहार का अ वर्ण किस सूत्र  में है ,और इत् संज्ञा वाला च् वर्ण किस सूत्र के अन्त मे है।

अ वर्ण अ, इ ,उ ,ण् सूत्र के आरंभ में है, तथा च्  ऐ ,औ, च्  सूत्र के अन्त  में है।

इन दोनों सूत्र के बीच में ॠ ,ॡ ,क्,।

ए, ओ ,ङ् ये दो सूत्र भी हैं।

अर्थात् अच इस प्रत्याहार में अ इ उ ण् , ऋ लृ क् , ए, ओ ,ङ्  , ऐ ,औ, च् ये चार सूत्र हैं।   अच् प्रत्याहार बनाने में अ इ उ ण् सूत्र के आरंभ का अ  वर्ण रहेगा ,परंतु ऊपर लिखे गए चारो सूत्र में जो इत संज्ञा वाले हलंत व्यंजन हैं,उनकी गणना अच् प्रत्याहार में नहीं होगी। इस प्रकार अच् प्रत्याहार में ….

“अ, इ, उ , ऋ ,लृ, ए, ओ, ऐ, औ“ये वर्ण आयेंगे।

अक् इस प्रत्याहार में …

अ, इ ,उ ,ण्। ॠ ,ॡ ,क्,। ये सूत्र आते हैं।

अक् प्रत्याहार में अ, इ, उ , ऋ ,लृ ये वर्ण आते हैं। इत् संज्ञा वाले ण् और क् इसमें नहीं गिने जाएंगे।

इसी प्रकार हल्  प्रत्याहार में .

ह, य ,व ,र ,ट्। ल ,ण् ।ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म्। झ, भ , ञ्। घ, ढ ,ध ,ष्।ज, ब, ग ,ड ,द, श्
ख ,फ ,छ ,ठ ,थ,च, ट, त, व्। क, प ,य्।

श ,ष ,स ,र्। ह ,ल्। …ये सूत्र आते हैं।

उपरोक्त सूत्रों में जो हलन्त व्यंजन हैं, वे हल्

प्रत्याहार में नहीं गिने जाएंगे। अतः हल्  प्रत्याहार  में …..

“ह, य, व, र,ल,ञ ,म ,ङ ,ण ,न

झ, भ,8 घ,ढ, ध,ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ , च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह “

ये वर्ण आयेंगे।

इस प्रकार प्रत्याहार बहुत सारे बनाए जा सकते हैं। परंतु ४२ प्रत्याहारों का ही उल्लेख है। शब्दशास्त्र में जितने प्रत्याहारों की अवश्यकता पड़ी , उतने ही प्रयोग में आए।

ये ४२ प्रत्याहार निम्नलिखित हैं

१.अक्  २. अच्  ३. अट्, ४.अण् , ५.अङ् , ६.अम्,  ७.अल्

८.अश्,९. इक्,  १०.इच्,११. इण्,  १२.उक्, १३.एङ् , १४.एच् ,

१५.ऐच् ,   १६.खय् ,  १७.खर् ,  १८.ङम्,  १९. चय् , २०. चर् , २१.  छव्,

२२.जश् , २३.झय् , २४.झर् , २५.झल् , २६.झश् ,   २७…झष् , २८..बश्

२९.भष् , ३०. मय्,  ३१. यञ्,  ३२.  यण् , ३३. यम्, ३४. यय् ,  ३५..यर्

३६.रल् ,  ३८. वल् ,  ३८..वश् ,  ३९..शर् ,  ४०..शल् ,४१.. हश् , ४२..हल्

इन प्रत्याहारों के कारण स्वरों को “अच् “

तथा व्यञ्जन को हल् कहा जाता है।

अल् अर्थात सारे स्वर और व्यञ्जन को

अल् कहा जाता है

अष्टाध्यायी परिचय..

इस ग्रंथ को अष्टाध्यायी,अष्टक, शब्दानुशासन, तथा वृत्तिसूत्र आदि नामों से जाना जाता है।

यह संस्कृत व्याकरण का  प्रतिनिधित्व करने वाला  एकमात्र मूल व्याकरण ग्रंथ है।

इस ग्रंथ में लगभग ४००० सूत्र और आठ अध्याय हैं।प्रत्येक अध्याय चार- चार पादों में विभक्त है।

ये पाद, सूत्रों में हैं।प्रथम व द्वितीय अध्याय में संज्ञा, परिभाषा  व समास से संबंधित सूत्र हैं।

तृतीय से पंचम अध्याय तक कृदंत व तद्धित प्रत्ययों का उल्लेख है। षष्टम अध्याय में संधि, स्वर, द्वित्व, संप्रसारण , आगम तथा लोप व दीर्घ आदि के सूत्र हैं। अष्टम् अध्याय में द्वित्व, प्लुत, णत्व , षत्व आदि के नियम बताए गए हैं।

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