वर्ण वर्ण के प्रकार….. वर्णों के उच्चारण स्थान और प्रयत्न
वर्ण विचार….वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। ये भाषा की मूल ध्वनियां हैं । इन सार्थक ध्वनियों से पद या शब्द बनते हैं। शब्दों से वाक्य बनते हैं। वाक्य से भाषा बनती है ।
भाषा वह माध्यम है,जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के भावों और विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त करता है, तथा दूसरों के मन के भावों और विचारों को उसके द्वारा कही गई बातों से समझ सकता है।भाषा में ध्वनि का बहुत महत्व है। ध्वनि भाषा का आधार है।इस ध्वनि के माध्यम से ही हम बातों को सुनते और समझते हैं। अगर ध्वनि न हो तो हम भाषा की कल्पना नही कर सकते हैं।
बोलते समय जो ध्वनियां मुख से निकलती हैं, उनको मूर्त रूप या लिखित रूप देने के लिए वर्णों के रूप में कुछ संकेत चिन्ह निर्धारित किए गए । तो हम यह कह सकते हैं, कि बात चीत करने में या कुछ जानने सुनने में जिन ध्वनियों का प्रयोग होता है,उनका मूर्त रुप या लिखित रूप अक्षर या वर्ण हैं।
वर्णविचार… वर्णों का अध्ययन
वर्ण या अक्षर….. परिभाषा
भाषा या ध्वनि की वह सबसे छोटी इकाई ,जिसको विभाजित नहीं किया जा सकता है, उन्हे अक्षर या वर्ण कहते हैं।जैसे क्,ख् ,च् , ट् ,त् प् , आदि।ये वर्ण भाषा की सबसे छोटी ध्वनियां है।राम इस शब्द के ,र्+आ+म्+अ ये चार खंड हैं, इनके और भाग नहीं हो सकते ।
वर्णो का उच्चारण स्थान
वर्णमाला– भाषा में बोले या लिखे जाने वाले वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
हर भाषा की अपनी वर्णमाला होती है।
* संस्कृत भाषा में वर्ण माहेश्वर सूत्र के रूप में हैं।
वर्ण विचार..
वर्णमाला..
स्वर
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ।
ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:।
व्यंजन
क, ख, ग, घ, ङ।
च, छ, ज, झ,ञ।
ट, ठ, ड, ढ ,ण। ( ड़ ढ़ )
त, थ, द, ध , न।
प, फ, ब, भ, म।
य , र, ल, व, श, ष,स, ह
क्ष, त्र, ज्ञ।
वर्णमाला के अंत में लिखे जाने वाले क्ष, त्र, ज्ञ ये शुद्ध वर्ण नहीं हैं। ये दो वर्णों के मेल से बने हैं….क् +ष् = क्ष
त् +र् =त्र
वर्णों को हम अपने कंठ,ओष्ठ, जिह्वा, तालु, मुख आदि की सहायता से बोलते हैं। मुख के अंदर वर्णों का उच्चारण स्थान और उच्चारण करते समय उसमे लगने वाले प्रयत्न के आधार पर वर्णों का विभाजन किया गया है।
कंठ ,तालु , मूर्धा, ओष्ठ, दंत, नासिका, कंठतालु, कंठोष्ठ, दंतोष्ठ, जिह्वामूल आदि ये उच्चारण स्थान हैं। बोलते समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु इन स्थानों पर अवरुद्ध हो कर या टकराकर या बाधित होती हुई बाहर आती है। दूसरे शब्दों में फेफड़ों से निकलने वाली वायु इन स्थानों को स्पर्श करती हुई बाहर आती है।
वर्ण विचार … वर्ण को उच्चारण करने के लिए प्रयत्न…
किसी भी वर्ण को बोलते या उच्चारित करते समय मुख ,कंठ , जिह्वा आदि द्वारा जो प्रयास (effort) किया जाता है,उसे ही प्रयत्न कहा जाता है।
प्रयत्न दो प्रकार का होता है…
१. आभ्यांतर प्रयत्न…
उच्चारण करते समय मुख के अंदर जो प्रयत्न होता है,उसे आभ्यांतर प्रयत्न कहते हैं।
आभ्यंतर प्रयत्न पांच प्रकार का होता है….
१… स्पृष्ट … वर्णों के उच्चारण करते समय जिह्वा के विभिन्न भागों द्वारा मुख के विभिन्न उच्चारण स्थान का स्पर्श किया जाता है, तब यह प्रयत्न स्पृष्ट कहा जाता है।
२… ईशत् स्पृष्ट … वर्णों के उच्चारण में जब उच्चारण स्थानों का थोड़ा स्पर्श किया जाता है,तो वह प्रयत्न ईषत् स्पृष्ट होता है।
३… ईषद्विवृत ..जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख विवर थोड़ा ही खुलता है,तो यह प्रयत्न ईषत् विवृत होता है।
४.. विवृत… जब वर्णों के उच्चारण करते समय मुख विवर खुला रहता है, तो वह प्रयत्न विवृत होता है।
५… संवृत.. संवृत प्रयत्न में मुख अत्यंत कम खुलता है।
२… वाह्य प्रयत्न
वाह्य प्रयत्न ११ प्रकार का होता है…
१..विवार… २.. संवार ३… श्वास
४.. नाद ५..घोष ६.. अघोष
७..अल्पप्राण ८.. महाप्राण ९.. उदात्त
१०.. अनुदात्त ११.. स्वरित
वर्ण विचार..
वर्ण के भेद या प्रकार …
वर्णों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है…
१…स्वर.
२….व्यंजन
स्वर….
“ स्वयं राजन्ते इति स्वरा:”
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र होता है, अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण करते समय किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें स्वर कहते हैं।इनके उच्चारण करते समय अंदर से निकलने वाली वायु बिना रुके बाहर आती है।
इनकी संख्या १३ है।
अ, आ, इ ,ई, उ, ऊ, ऋ,
ए,ऐ, ओ,औ, अं, अ:।
वर्ण विचार.……. स्वरों के भेद/ वर्गीकरण
उच्चारण में लगने वाले समय तथा मात्रा के आधार पर स्वरों को तीन भागों में विभाजित किया गया है…..
१..ह्रस्व स्वर
२..दीर्घ स्वर…
३…प्लुत स्वर
* ह्रस्व स्वर.. “एक मात्राभवेद्ह्रस्वः”
जिन स्वर वर्णों के उच्चारण में अत्यंत कम समय या एक मात्रा का समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
ह्रस्व स्वर को मूल स्वर भी कहते हैं।
ये पांच हैं….. अ, इ , उ, ऋ, ऌ।
( लृ का प्रयोग संस्कृत भाषा में होता है। हिंदी भाषा में ऌ का प्रयोग ना के बराबर होता है।)
दीर्घ स्वर…” द्विमात्रो दीर्घ उच्यते“
जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वर से दुगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इनके उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है, तथा ह्रस्व स्वर से दुगुना समय लगता है।
ये कुल आठ होते हैं……आ, ई, ऊ,ॠ , ए, ऐ, ओ, औ ।
इनमे चार स्वर आ, ई, ऊ,ॠ,… अ, इ, उ, ऋ के दीर्घ रूप हैं।
ए, ऐ ,ओ ,औ इन्हें संयुक्त स्वर या मिश्र स्वर और संध्य स्वर(diphthongs) भी कहा जाता है ,क्योंकि ये दो स्वरों के मेल से बने हैं।
जैसे…
अ+इ= ए , अ+ए=ऐ
अ+उ=ओ ,। अ +ओ=औ
प्लुत स्वर…”त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो”
प्लुत स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व और दीर्घ से अधिक समय लगता है। इनके उच्चारण में ३मात्रा का समय लगता है।
जब हम किसी को पुकारते हैं,या किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं ,तो उसमें अंतिम स्वर का उच्चारण लम्बा हो जाता है। इसे ही प्लुत स्वर कहते हैं।
जैसे… ओ३म में ओ प्लुत स्वर है।इसी तरह…सुनो ssss हे!!!! राम:, भो!!! बालक:, आदि।
इनके उच्चारण में दो से अधिक मात्रा का समय लगता है।
प्लुत स्वर दिखाने के लिए ३ का चिन्ह। या s का चिन्ह लगाते हैं।
* संबोधन में (!) चिन्ह् का प्रयोग किया जाता है।
वर्ण विचार ….प्रयत्न के आधार पर स्वरों के भेद
आभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर स्वरों के भेद….
१.. विवृत. 2.. अर्ध विवृत
३… संवृत ४… अर्ध संवृत
विवृत… विवृत का अर्थ है ,खुला हुआ।जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख खुला हुआ रहता है, उन्हें विवृत वर्ण कहते हैं। आ विवृत स्वर है।
**(सभी स्वर वर्णों का अभ्यांतर प्रयत्न विवृत ही होता है।)” विवृतम् स्वराणां “ह्रस्वस्य अवर्णस्य प्रयोगे संवृतं
परंतु मुख के कम, जादा खुलने के अधार पर अर्ध विवृत , संवृत,अर्ध संवृत विभाजन किया गया है।
अर्ध विवृत.. जिन स्वरों के उच्चारण में मुख विवृत से थोड़ा कम खुलता है,उन्हें अर्ध विवृत स्वर कहते हैं। ऐ,औ के उच्चारण में मुख थोड़ा कम खुलता है।
संवृत… संवृत के उच्चारण में मुख कम खुलता है। अ वर्ण तथा इ,ई, उ, ऊ संवृत है।
अर्ध संवृत… ए तथा ओ अर्ध संवृत हैं।
उच्चारण के आधार पर स्वरों को पुनः तीन भागों में बांटा गया है…
१…उदात्त २… अनुदात्त ३….स्वरित
उदात्त….“उच्चैरूदात्त:“
कंठ तालु आदि स्थानों के ऊपर के भाग से जिन स्वरों का उच्चारण होता है, उन्हें उदात्त स्वर कहते हैं।
अनुदात्त
”नीचैरनुदात्तः”
कंठ तालु आदि स्थानों के नीचे के भाग से जिन स्वरों का उच्चारण होता है, उन्हें अनुदात्त स्वर कहते हैं।
स्वरित….
“समाहार स्वरितः “
जब उदात्त और अनुदात्त एक साथ हों,तो वे स्वरित स्वर होते हैं।
*ये उदात्त आदि स्वर संस्कृत भाषा में मुख्य रूप से वैदिक संस्कृत में प्रयोग किए जाते हैं। मंत्रों के उच्चारण में इनका बहुत महत्व होता है।
क्योंकि ह्रस्व ,दीर्घ आदि मात्राओं के अशुद्ध हो जाने से मंत्रों के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है। अर्थात ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ ,और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाने पर बहुधा अर्थ भी विपरीत हो जाता है।अतः वैदिक मंत्रों के उच्चारण में इन स्वरों पर बहुत ध्यान दिया जाता है।
लौकिक हिंदी आदि भाषा में इस तरह का स्वर भेद नहीं दिखता है। इस प्रकार का भेद पहचाना अत्यंत कठिन कार्य है।
जिस प्रकार आ, ऐ ,ओ आदि के लिए मात्राएं लगती हैं,उसी प्रकार अनुदात्त आदि के लिए भी मात्राएं लगती हैं।
उदात्त के लिए कोई मात्रा नहीं होती है।
अनुदात्त के लिए अक्षर के नीचे ( _ ) पड़ी रेखा लगाई जाती है।
स्वरित के लिएअक्षर के ऊपर एक खड़ी (|) रेखा लगाई जाती है।
* जिह्वा की सक्रियता के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण
१… अग्र स्वर…जिह्वा के अगले भाग को उठा कर जिन स्वरों का उच्चारण किया जाता है , वे अग्र स्वर कहे जाते हैं।
जैसे…. इ, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर… जिस स्वर का उच्चारण जिह्वा के मध्य भाग से किया जाता है।
जैसे… अ
पश्च स्वर… जिन स्वरों का उच्चारण जिह्वा के पश्च अर्थात पीछे के भाग की सहायता से किया जाता, वे पश्च स्वर हैं। जैसे… उ, ऊ, ओ, औ, तथा आ।
ओष्ठ ( lips) की स्थिति के आधार पर स्वरों के भेद…
१…प्रसृत… प्रसृत उच्चारण की स्थिति में होंठ अपने स्वाभाविक रूप में रहते हुए थोड़े खुले रहते हैं। इ, ई तथा ए, ऐ के उच्चारण में ऐसी स्थिति होती है।
२…वर्तुल…
अर्थात गोल। ओष्ठों को जब गोल बनाकर,थोड़ा आगे निकाल लेते
हैं,तो यह स्थिति वर्तुल होती है। इस तरह, उ , ऊ,तथा ओ, औ का उच्चारण किया जाता है।
३….अर्धवर्तुल…
अर्थात आधा गोला। जब ओष्ठ पूरा गोल न बनकर आधा गोलाकार बनता है,तो यह स्थिति अर्ध वर्तुल की होती है। जैसे…दीर्घ आ का उच्चारण ।
स्वरों की मात्राएं…स्वर दो रूप में लिखे जाते हैं, मूल रूप में और मात्रा रूप में।स्वर जब व्यंजनों के साथ लिखे जाते हैं,तो इनके स्थान पर इनकी मात्राएं लगती हैं।