तव्यत प्रत्यय…परिचय तथा प्रयोग के नियम ..

तव्यत प्रत्यय का प्रयोग विधिलिङ्ग् लकार के अर्थ में होता है।तथा इसका प्रयोग कर्म वाच्य में होता है।

चहिये के अर्थ में धातुओं का प्रयोग करने के लिये तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।

इसका अर्थ संभावना अनुमति आदि होता है। कर्म वाच्य तथा भाव वाच्य में इसका प्रयोग होता है। कर्तृ वाच्य में इसका प्रयोग नहीं होता है।

इसका अर्थ..संभावना अनुमति इत्यादि होता है।

तव्यत प्रत्यय के वर्ण का लोप हो जाता है तथा धातु के साथ तव्य जोड़ा जाता है।

यथा पठ् + तव्यत > तव्य = पठितव्य।

इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप पुलिङ्ग् में राम स्त्रिलिङ्ग् में रमा और नपुन्सक लिङ्ग में फल की तरह चलते हैं।

पुलिङ्ग् में..

पठितव्यः पठितव्यौपठितव्याः

स्त्रिलिङ्ग् में..

पठितव्यापठितव्येपठितव्याः

नपुंसक लिङ्ग में..

पठितव्यम्पठितव्येपठितव्यानि

सकर्मक धातु के साथ तव्यत प्रत्यय…

यह प्रत्यय सकर्मक धातुओं के साथ कर्म वाच्य में होता है, अर्थात..कर्ता तृतीया विभक्ति या षष्ठी विभक्ति में में तथा कर्म प्रथमा विभक्ति में हो जाता है।

अर्थात जब सकर्मक धातुओं के साथ् यह प्रत्यय प्रयोग किया जाता है , तो क्रिया के लिङ्ग और वचन कर्म के लिङ्ग और वचन के अनुसार होता है , तथा प्रथमान्त होता है अर्थात प्रथमा विभक्ति में होता है।

जैसे….

मया पुस्तकं पठितव्यम् ..

मुझे पुस्तक पढ़नी चाहिए।

इस उदाहरण में पुस्तकम् एक वचन में है, अतः पठितव्यम् क्रिया भी एक वचन में ही प्रयुक्त हुई है।

मया /मम पुस्तके पठितव्ये।

मुझे दो पुस्तकें पढ़नी चाहिये।

इस उदाहरण में पुस्तके द्वि वचन में है अतः पठितव्ये क्रिया भी द्विवचन में प्रयुक्त हुई है।

मया पुस्तकानि पठितव्यानि।

मुझे पुस्तकें पढ़नी चाहिये।…

इस उदाहरण में पुस्तकानि बहुवचन में है अतः क्रिया पठितव्यानि भी बहुवचन में प्रयुक्त हुई है।

अस्माभिः / अस्माकम् पुस्तिका पठनीया।

हमें पुस्तक पढ़नी चाहिये।..

इस उदाहरण में पुस्तिका शब्द स्त्रिलिङ्ग् एक वचन में है अतः क्रिया भी स्त्रिलिङ्ग् एक वचन में प्रयुक्त हुई।

अकर्मक धातु के साथ तव्यत प्रत्यय…

अकर्मक धातुओं के साथ यह प्रत्यय भाववाच्य में होता है। भाव वाच्य में भी कर्ता तृतीया विभक्ति में होता है ।…

जब अकर्मक धातु के साथ यह प्रत्यय प्रयुक्त होता है , तब् क्रिया सदा नपुन्सक लिङ्ग एक वचन की होती है। कर्ता के लिंग और वचन का क्रिया के लिंग और वचन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

जैसे… त्वया शयितव्यम्।

तुम्हे सोना चाहिये।

युष्माभिः / युष्माकं शयितव्यम्।

तुम सब् को सोना चाहिये।

मया शयितव्यम्।

मुझे सोना चाहिये।

रामेण शयितव्यम्।

राम को सोना चाहिये।

उपरोक्त उदाहरणों में कोई कर्म नहीं है, अतः क्रिया नपुन्सक लिङ्ग एक वचन में है। कर्ता के लिङ्ग वचन के कारण क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

इस प्रत्यय के साथ कर्ता सदा तृतीया या षष्ठी विभक्ति में ही रहता है।

इस प्रत्यय से बने शब्द विशेषण की भांति भी प्रयुक्त होते हैं। इस दशा में इनकी विभक्ति लिङ्ग तथा वचन अपने विशेष्य की भांति होते हैं।

तव्यत प्रत्यय का वाक्य में प्रयोग..

तव्यत प्रत्यय का वाक्य में प्रयोग..

कमलेन लेखः लेखितव्यः।

रमया पुष्पाणि न त्रोटितव्यानि

अस्माभिः जलम् वृथा न कर्तव्यम् ।

तेन उच्चैः न वक्तव्यम् ।

प्रातः काले सर्वैः बहिः भ्रमितव्यम् ।

अस्माभिः संतुलितभोजनं खादितव्यम् ।

रामेन अवश्यमेव तत्र गन्तव्यम् ।

छात्रैः पाठाः पठितव्याः।

सर्वैः धर्मः पालितव्यः।

श्रमिकाभिः एतत् कार्यं कर्तव्यम्।

सैनिकेन् देशरक्षा कर्तव्या।

जनैः प्रियं हि वक्तव्यम्।

तौ लेखौ लिखितव्यौ।

न्यायाधीशेन न्यायः कर्तव्यः।

बालकैः दुग्धं पातव्यं।

युवाभ्याम् यथाशक्ति प्रयत्नः कर्तव्यः।

पर्यावरणः दूषिता न कर्तव्या।

मुनिभिः सर्वस्वम् त्यक्तव्यं।

जनैः प्रशस्तः मार्गः एव चलितव्यः।

जनैः निर्धनानां धनं दातव्यं।

युष्माभिः समाचारपत्राणि द्रष्टव्यानि।

त्वया सुक्तिवाक्यः स्मर्तव्यः।

मया गीतं गातव्यं।

नृपेण प्रजाः पलितव्याः।

बालकैः फलानि भोक्तव्यानि।

स्वास्थाय निर्मलं जलम् पातव्यम्।

अकर्मक धातु के साथ तव्यत के उदाहरण..

बालकेन् स्थातव्यम्।

काशी द्रष्टव्या पुरी अस्ति।

संगीतं श्रोतव्यम्।

बालकैः स्थातव्यम्।

स्वास्थाय हसितव्यम्।

कुछ धातुओं के तव्यत प्रत्यय के साथ बने हुए रूप…

धातुतव्यत से बना रूप
अर्च्अर्चित्व्य
आप्आप्तव्य
कृकर्तव्य
क्रीक्रेतव्य
क्षम्क्षन्तव्य
खाद्खादितव्य
गम्गन्तव्य
गैगातव्य
ग्रह्ग्रहीतव्य
चल्चलितव्य
चिचेतव्य
छाद्छादितव्य
जिजेतव्य
त्यज्त्यक्तव्य
पठ्पठितव्य
पूज्पुजितव्य
कथ्कथितव्य
दृश्द्रष्टव्य
दादातव्य
नीनेतव्य
नृत्नर्तितव्य
पत्पतितव्य
पापातव्य
पाल्पालितव्य
भूभवितव्य
भृभर्तव्य
मन्मन्तव्य
याच्याचितव्य
रम्रन्तव्य
लभ्लब्धव्य
वच्वक्तव्य
वस्वस्तव्य
वह्वोढव्य
शीशयितव्य
श्रुश्रोतव्य
सह्सोढव्य/ सहितव्य
सृज्स्रष्टव्य
स्थास्थातव्य
स्मृसमर्तव्य
हन्हन्तव्य
हस्हसितव्य
हृहर्तव्य
चुर्चोरितव्य

ऊपर लिखे हुए रूप के आधार पर पुलिङ्ग् में राम की तरह, स्त्रिलिङ्ग् में रमा की तरह तथा नपुंसक लिङ्ग में फल की तरह रूप बना लेन चाहिये।

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन..

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