उपपद विभक्ति किसे कहते हैं/uppad vibhakti kise kahate hain

जब कारक चिन्हो के कारण पदों का प्रयोग होता है,उसे कारक विभक्ति कहते हैं।परन्तु,जब वाक्य में किसी विशेष शब्द के कारण, विभक्ति लग जाती है तो उसे उपपद विभक्ति कहते हैं।

जैसे… सैनिकाः देशं रक्षन्ति।..सैनिक देश की रक्षा करते हैं। यहां कारक नियम से, देश की, मे षष्ठी विभक्ति होनी चहिये थी, पर रक्ष् धातु के कारण द्वितीया विभक्ति हुई।pp

अर्थात जब कारक नियम के अनुसार विभक्ति न लग कर विशेष शब्द और धातु के कारण कारक के चिन्हो और नियमो की उपेक्षा कर के जो विशेष विभक्ति लगती है,इसे ही उपपद विभक्ति कहते हैं।

कारक विभक्ति किसे कहते हैं….

उपपद विभक्ति …द्वितीया

1 आधिशीङ्स्थासां कर्म….

यदि शीङ् ( सोना ) स्था (ठहरना ) आस् ( बैठना ) धातुओं से पहले अधि उपसर्ग आए तो इनके आधार में द्वितीया विभक्ति होती है। आधार अर्थात क्रिया के होने का स्थान।

जैसे..बालकः शय्याम अधिशेते।

ब्रह्मचारी शय्यां अधिशेते।

शय्या सोने का आधार ( स्थान )है नियम के अनुसार सप्तमी होनी चहिये , परन्तु शीङ् धातु से पहले अधि उपसर्ग आने से शय्यां में द्वितीया हुई।

विमलः गृहम् अधितिष्ठति । विमल घर मे स्थित है। यहां भी सप्तमी होनी चाहिये परन्तु अधि उपसर्ग के कारण द्वितीया विभक्ति हुई।

अधि + आस्…राजा सिंहासनं अध्यासते।

2..यदि वस् धातु से पहले उप, अनु, अधि या आङ्ग् उपसर्ग आये तो क्रिया के आधार। (स्थान )में द्वितीया होती है।

जैसे…पशवः वनं अधिवसन्ति।

रामः गृहम् उपवसति।

ऋषयः आश्रमं उपवसन्ति / अनुवसन्ति / आवसन्ति।

विशेष..जहां उप + वस् धातु का अर्थ उपवास (अनशन ) करना होता है वहां सप्तमी विभक्ति ही होती है द्वितीया नहीं।

3… सूत्र..अभिनिविशश्च् … विश् धातु से पहले यदि अभि नि उपसर्ग लगा हो तो विश् धातु के आधार में द्वितीया होती है।

जैसे…कृष्णः सन्मार्गं अभिनिविशते।

गुरुं सर्वतः छात्रा : सन्ति।

धिक्! स्वर्थिम् / मूर्खं।

धिक् देशद्रोहिणम्।

अधोअधः / अध्यधि भूमिं पातालः।

अभितः ( दोनो ओर) परितः ( चारो ओर) समया( समीप) निकषा( समीप) हा,( हाय) प्रति ( की ओर) इनके साथ भी द्वितीया विभक्ति होती है।

मम् गृहम् अभितः आम्र वृक्षाः सन्ति।

दुर्गं परितः परिखा अस्ति। किले के चरो तरफ खाई है।

ग्रामं समया / निकषा नदी वहति।

रामः लङ्कां समया रावणं व्यपादयत।राम ने लंका के निकट रावण को मारा।

ग्रामं निकषा नदी वहति।

हा!! कृष्णाभक्तं। जो कृष्ण का भक्त नही है उसे धिक्कार है।

हा नास्तिक। नास्तिक के प्रति शोक।

त्वम् मोहनं प्रति अपश्यत्। तुमने मोहन की ओर देखा।

सः ग्रामम प्रति गच्छति। वह गांव की ओर जाता है।

सूत्र..अन्तरा अन्तरेण् युक्ते..अन्तरा ( बीच में ) अन्तरेण् ( बिना ) तथा ऋते ( बिना ) के योग में या साथ में द्वितीया विभक्ति होती है।

भवन्तः माम च अन्तरा हरिः अस्ति। आपके और मेरे बीच भगवान हैं।

सः त्वम् बिना देवालयं न गमिष्यति।

त्वम् बिना कथं गच्छामि।

ऋते.. गोपालं ऋते कः तत्र गमिष्यति। गोपाल के बिना कौन वहां जायेगा।

क्रिया विशेषण में भी द्वितीया होती है।

जैसे मृगः सत्वरं धावति। हिरन तेज दौड़ता है।

उपपद विभक्ति … तृतीया

१..येनाङ्गविकारः –

शरीर के जिस अङ्ग में कोई विकार हो,उस अङ्ग में तृतीया विभक्ति होती है। ( विकार अर्थात काना,लुला, लंगड़ा , बहरा अंधा आदि)

जैसे..सः नेत्रेण् काणः अस्ति। वहआंखों से काना है। इस वाक्य में जिसका शरीर है उसके आंखों में विकार है,अतः नेत्रेण् में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है।

सः पादेन खञ्जः अस्ति।

करणः कर्णाभ्यां बधिरः अस्ति।

2…साथ अर्थ रखने वाले शब्द..सह , साकम् , समम्, सार्धम् इन शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे…

रामः कृष्णेन सह् गच्छति। राम कृष्ण के साथ् जाता है। इस वाक्य में कृष्ण तथा सह् का योग है,अतः कृष्णेन में तृतीया विभक्ति हुई।

कृष्णः बलरामेन सह् मथुरां अगच्छत। कृष्ण बलराम के साथ मथुरा गए।

छात्रः गुरुणा साकम् आगच्छति।छात्र गुरू के साथ आता है

मनोहरः देवेशेन् समं क्रीडति।मनोहर देवेश के साथ खेलता है।

  • अहम् जनकेन समम् आगमिष्यामि। मैं पिता के साथ आऊंगा।
  • अर्जुनः कृष्णेन सार्धम् कुरुक्षेत्रं अगच्छत्। अर्जुन कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र गए।

३..जिस लक्षण के द्वारा कोई व्यक्ति या वस्तु पहचानी जाती है उस लक्षणवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।

जैसे … सः जटाभिः तापसः। वह जटाओं से तपस्वी है। यहां जटा द्वारा तपस्वी की पहचान हो रही है। अतः जटाभिः में तृतीया विभक्ति हुई है।

४.. प्रकृति ( स्वभाव ) प्रायः ( लगभग ) गोत्र (कुल ), सम , विषम , सुख, दुख, अपि, किं, कार्यं, प्रयोजनम् , अर्थः , हीनः इन शब्दों के साथ तृतीया विभक्ति होती है।

जैसे… कमलेशः प्रकृत्या साधुः अस्ति।

सः गोत्रेण् गौतमः अस्ति।

सः समेन एति। वह समतल प्रदेश से जाता है।

सर्वाः स्वगृहे सुखेन् वसन्ति।

बालिका दुखेन् वनं गच्छति।

तृणेन अपि कार्यं भवति।

कलहेन किं?

तेन मार्गेण किम् यत्र न गम्यते।

पुत्रेण किम् अर्थः, यः विद्वान नास्ति।

तेन् यानेन को लाभः यत् न चलति।

  • तेन् दीपेन किम् प्रयोजनं यत्र तैलं नास्ति।
  • अन्धानां दर्पणेन किम् प्रयोजनं।
  • केन् प्रयोजनेन यूयं अत्र आगच्छत्?
  • धर्मेण हीनः न शोभते।

५..अलं ( मत ) के योग मे तृतीया विभक्ति होती है।

  • जैसे.. अलं श्रमेण्। परिश्रम मत करो।
  • अलं संतापेन । संताप मत करो।
  • अलम् कलहेन। कलह मत करो।
  • अलम् पुष्प त्रोटनेन। फूल मत तोड़ो।

६..अपवर्गे तृतीया ..

अपवर्ग ( फल प्राप्ति ) को बताने वाले समय तथा दुरी बताने वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। अर्थात जितने समय में या जितना मार्ग चलते कार्य सिद्ध् हो जाये।

जैसे… मासेन् व्याकरणम् अधीतं।

  • रमेशः मासेन् अनुवाकः अधीते।
  • क्रोशेन पद्यं अधीतं।
  • देवदत्तः योजनेन उपन्यासं अपठम्।

७..जिस मूल्य पर कोई वस्तु खरीदी जाती है उस मूल्य वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।

  • जैसे..रुप्यकद्वयेन क्रीतमिदम् पुस्तकम्। दो रुपये में पुस्तक खरीदी।
  • सहस्रेण धान्यं क्रीणाति।
  • सः त्रिभिः रुप्यकैः बस चिटिकाम् क्रीणाति।

८..जिस पर कोई वस्तु ढोई जाती है उस में तृतीया विभक्ति होती है।

  • जैसे… भृत्यः स्कन्धेन भारं वहति। नौकर कंधे पर बोझ ढोता है।

९..शपथ बोधक शब्द में जिसकी शपथ ली जाती है, उसमें तृतीया विभक्ति होती है।

  • जैसे.. अहम पुत्रेण शपामि। मै पुत्र की शपथ ( कसम ) लेता हूं।
  • सः ईश्वरेण शपति।

चतुर्थी विभक्ति… उपपद विभक्ति

१.. रुचि अर्थ रखने वाली धातुओं के योग में जिसको कोई वस्तु अच्छी लगती है,उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

  • जैसे..रामाय पठनं रोचते। इस वाक्य में राम को पढ़ना अच्छा लगता है, तथा रुचि अर्थ वाली रुच् धातु का योग भी है इसलिये रामाय में चतुर्थी विभक्ति हुई।
  • बालः मोदकं रोचते।
  • देवेभ्यः भक्तिः रोचते।
  • मह्यं चित्रकला रोचते।

२..क्रुध् ( गुस्सा होना ) द्रुह् ( द्रोह् करना / शत्रुता करना ) ईर्ष्या करना, असूय ( गुणों में दोष निकालना, जलन करना) इन धातुओं के साथ तथा इनके समान अर्थ वाली धातुओं के साथ में जिस पर क्रोध किया जाता है या जिससे ईर्ष्या द्वेष आसूया किया जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

  • जैसे.. दिनेशः हरये क्रुद्धयति/ द्रुह्यति / ईर्ष्यति / असूयति वा। अर्थात दिनेश हरि से नाराज होता है , द्रोह करता है, ईर्ष्या करता है या असूया करता है।

विशेष.. यदि क्रुध् तथा द्रुह् धातु से पहले कोई उपसर्ग आता है तो द्वितीया विभक्ति होगी।

३…नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधा अलं वषट् योगाच्च। नमः ( नमस्कार ) स्वस्ति (कल्याण ) स्वाहा, स्वधा , अलम् ( समर्थ या पर्याप्त या बराबर के योग का ) तथा वषट्( हवि का दान ) के योगमें चतुर्थी होती है।

  • जैसे..श्री गणेशाय नमः। गुरुवे नमः।
  • छात्रेभ्यः स्वस्ति। छात्रों का कल्याण हो।
  • प्रजाभ्यः स्वस्ति।
  • अग्नये स्वाहा। अग्नि को आहुति देना।
  • इन्द्राय स्वाहा।
  • पितृभ्यः स्वधा। पितरों को हवि का दान।
  • इन्द्राय वषट्।
  • कृष्ण कंसाय अलम्। कृष्ण कंस के लिये काफी हैं।
  • एतत् दुग्धम् बालकाय अलम्।
  • एतत् वेतनं भृत्याय अलम्।
  • वयं शत्रुभ्यः अलम्।
  • औषधिः रुग्णाय् अलम्।
  • सैनिकाः शत्रून् जेतुं अलम्

४..स्पृह धातु के साथ जिसकी इच्छा की जाती है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

  • जैसे…इंदू संगीताय स्प्रिह्यति।
  • छात्राः विद्यायै स्पृहयन्ति।
  • मुनिः मुक्तये स्प्रिह्यति।

तुमुन प्रत्यय भी चतुर्थी अर्थ में प्रयुक्त होता है।

  • जैसे…महेशः तत्र गन्तुं ( गमनाय ) सज्ज:अस्ति। महेश वहां जाने के लिये तैयार है।

पञ्चमी.. उपपद विभक्ति…

१.. भय तथा रक्षा अर्थ वाली धतुओ… ( भी ,त्रस, रक्ष्, त्रै )के प्रयोग में जिससे डरा जाता है या जिसकी रक्षा की जाती है, उसमे पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।

  • जैसे…साधुः पापात् विभेति। (भी धातु के योग में ) पापात् में पञ्चमी हुई।
  • मूषकः विडालात् विभेति।
  • चौरः रक्षकात् त्रस्यति। ( त्रस् धातु )
  • वीरः दुष्टात् नारीम् रक्षति। (रक्ष् धातु )
  • खलेभ्यः राजा त्रायते।

२.. सूत्र..वारणार्थानामिप्सितः

निवारण के योग में जहां से हटाया जाय उसमे पञ्चमी विभक्ति होती है।

  • जैसे…सः मित्रं पापात् निवारयति। वह मित्र को पाप से हटाता है।
  • कृषकः यवेभ्यो गां निवारयति। किसान जौ के खेत से गाय को हटाता है।

३..जुगुप्सा (घृणा, निन्दा करना,) विराम(रुकना) तथा प्रमाद ( भूल, लापरवाही, आलस्य ) इन धातुओं के योग में पञ्चमी होती है।

  • जैसे… सत्यवादी मिथ्याभाषणात् जुगुप्सते। सत्य बोलने वाला झूठ बोलने से घृणा करता है।
  • भक्तः पापात् जुगुप्सते।
  • कर्तव्य निष्ठः कर्तव्यात् न विरमति।
  • अलसः अध्ययनात् विरमति।
  • लोकेशः अध्ययनात् प्रमद्यमति।
  • दुष्टः धर्मात् प्रमाद्यति।

.४ अख्यातोपयोगे… जिससे नियम पूर्वक कुछ पढ़ा जाता है, उसमें पंचमी होती है। जैसे….

  • सः उपध्यायात् रामायणं अधीते।

५..जनिकर्तुः प्रकृतिः..जिससे कोई वस्तु उत्पन्न होती है,उसमे पञ्चमी होती है।

जैसे..

  • ब्राह्मः प्रजाः जायन्ते। ब्रह्मा से प्रजा उत्पन्न होती है।
  • गंगा हिमलयात् प्रभवति। गङ्गा हिमालय से उत्पन्न होती है ।

पृथक् ( अलग ) नाना और बिना ( बिना )इन शब्दों क्व योग में द्वितीया या तृतीया या पञ्चमी होती है।

६..अन्य (भिन्न, अरात् समीप या दूर ), इतर ( दूसरा ),ऋते ( बिना ),पूर्वं, प्रत्यक् ( पश्चिम ) उदक् ( उत्तर ), दक्षिणः, बहिः (बाहर ), अनन्तरं, परः,( बाद में ),ऊर्ध्वं ( ऊपर ),आरभ्य ( से लेकर ),इन शब्दों के योग में पञ्चमी होती है।

जैसे..

  • रामात् भिन्नः / अन्यः कोsपि न आगच्छति।
  • ग्रामात् अरात् वनं अस्ति ।
  • धर्मात् इतरः कः अवलंबः।
  • श्यमात् इतरः अत्र कोsस्ति?
  • ज्ञानात् ऋते न मुक्तिः।
  • नगरात् पूर्वं नदी वहति।
  • गृहात् प्रत्यक् देवालयः अस्ति।
  • ग्रामात् उत्तरं विद्यालयः अस्ति।
  • गृहात् बहिः याचकः अस्ति।

दूर और अन्तिक शब्दों के साथ द्वितीया,तृतीया और पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।

७..तुलनात्मक.. जब किन्ही दो वस्तुओं में तरप् और ईयसुन् प्रत्यय वाले शब्दों तथा तुलनात्मक शब्दों द्वारा तुलना की जाती है, तब जिससे तुलना की जाती है उसमे पञ्चमी होती है।

जैसे…

  • तरप्..मोहनः दिनेशात् सुन्दरतरः अस्ति।मोहन दिनेश से अधिक सुन्दर है।
  • ईयसुन..अस्मिन् विषये सत्यात् अनृतं श्रेयः।

षष्ठी विभक्ति..उपपद विभक्ति…

१…हेतु वाचक ( हेतु कारण निमित्त और प्रयोजन )इन शब्दों के साथ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। हेतु शब्द का प्रयोग होने पर जो शब्द कारण होता है उस शब्द में तथा हेतु शब्द में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।

जैसे…

  • अहम् अध्ययनस्य हेतोः अत्र वसामि। मै अध्ययन के लिये यहां रहता हूं। इस वाक्य मे हेतु शब्द में तथा अध्ययन शब्द में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग हुआ है।
  • कृषकः अन्नस्य हेतोः/ कारणस्य/ प्रयोजनस्य / निमित्तस्य क्षेत्रं गच्छति।

२..जब हेतु शब्द के साथ किसी सर्वनाम शब्द का प्रयोग होता है,तो सर्वनाम और हेतु दोनो शब्दों में तृतीया पञ्चमी या षष्ठी का प्रयोग होता है।

  • जैसे… कस्य हेतोः अत्र वसति।
  • कस्मात् हेतोः अत्र वसति।

३… दूर तथा अन्तिक इनके अर्थ वाले अन्य शब्दों के साथ पञ्चमी तथा षष्ठी दोनो विभक्तियां प्रयोग की जाती हैं।

  • जैसे.. गृहस्य / गृहात् दूरे जलाशयः अस्ति।
  • वनं ग्रामस्य दूरं।
  • वनं ग्रामात् दूरं।

नोट… जिससे दूरी दिखाई जाती है उसमे पञ्चमी या षष्ठी होती है। परन्तु दूर वाचक या निकट वाचक शब्दों में द्वितीया होती है।

४…..बराबर या समान अर्थ रखने वाले तुल्य, सदृश, सम, सकाशं आदि शब्दों के योग में जिससे तुलना की जाती है,उसमे षष्ठी या तृतीया विभक्ति होती है।

जैसे…

  • रामस्य /रामेण तुल्यः कोअपि वीरः नास्ति।
  • तव समः उप्देशकः नास्ति।
  • महात्मा गान्धी सत्ये हरिश्चन्द्रस्य समः आसीत्।
  • कालीदासस्य सदृशः कोअपि कविः नास्ति।

५….“स्मृ ( याद करना ) दय् ( दया करना ),ईश् ( राज करना ), प्र + भू ( समर्थ होना ), अधि +इ ( याद करना/ स्मरण करना )”

इन धातुओं के योग में इनके कर्म में अर्थात…जिसे याद किया जाता है, जिसे स्मरण किया जाता है या जिस पर दया किया जाता है,उसमे षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे..

  • बालकः मातुः स्मरति। स्मृ धातु
  • बालकः मातुः अध्येति। अधि + इ धातु
  • महाराजः निजस्य कन्या जनस्य प्रभवति।
  • अहम् आत्मनः प्रभवामि।

७…जिसका अनादर या तिरस्कार करके कार्य किया जाता है, उसमे षष्ठी या सप्तमी होती है।

जैसे…..

  • रुदतः पुत्रस्य वनं प्राव्राजीत्।रोते हुए पुत्र का तिरस्कार करके वह सन्यासी हो गया।
  • निवारयतोअपि पितुः अध्ययनं परित्यक्त्वान। पिता के मना करने पर भी उनका तिरस्कार करके अध्ययन त्याग दिया।

८…पुरतः ( सामने से ), पृष्ठतः ( पीछे से ), वामतः ( वाम से ), दक्षिणतः ( दक्षिण से ) इन दिशा वाचक शब्दों के योग में षष्ठी होती है।

जैसे.. गृहस्य पुरतः।

नगरस्य दक्षिणतः।

सप्तमी उपपद विभक्ति…

१..साधु ( अच्छा ), असाधु ( बुरा ), शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है। अर्थात जिसके लिये साधु या असाधु होता है उसमे सप्तमी होती है। जैसे..

साधुः कृष्णो मातरि। कृष्ण अपनी मां के लिये बहुत अच्छे थे। मातरि मे सप्तमी विभक्ति हुई।

असाधुः मातुले । मामा के लिये बुरे थे।…मातुले में सप्तमी हुई।

दुर्योधनः पाण्डवेषु असाधुः आसीत्।

इसे भी देखिये…उपपद विभक्ति

….कुशल, निपुण, शौण्ड्, प्रवीण, दक्ष, पण्डित (निपुण ) इन शब्दों के साथ सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे…

अनीता वीणा वादने कुशला/ निपुणा / प्रवीणा अस्ति।

स: गणित विषये निपुणः। संस्कृते प्रवीणः अस्ति।

३… निर्धारण में.. अर्थात जब किसी समुदाय में किसी धातु या व्यक्ति की कोई विशेषता बताई जाती है, तब उस समुदाय वाचक शब्द में षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है।

जैसे ..

गवां/ गोषु कृष्णा बहुक्षीरा। गायों में काली गाय बहुत अधिक दूध देती है। यहां गायों में काली गाय की विशेषता बताई गई है , अतः गाय में षष्ठी/ सप्तमी विभक्ति हुई।

पांडवेषु भीमः बालवत्तमः आसीत् । पांडवों में भीम सबसे अधिक बलवान थे। यहां पांडवों में भीम की विशेषता बताई गई है अतः पांडवों में सप्तमी विभक्ति हुई।

छात्रेषु / छात्राणाम् सोहनः श्रेष्ठः अस्ति।

कविषु / कविनाम कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।

४…जिसके लिए स्नेह , आसक्ति , अभिलाषा या सम्मान दिखाया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे ..

माता पुत्रे स्निह्यति । यहां पुत्र पर स्नेह दिखा गया है।

शकुंतलायां दुष्यंतस्य आसक्तिः आसीत्।

शकुन्तला पर दुष्यन्त की आसक्ति थी।

गुरौ भक्तिः कर्तव्या।

गुरु में भक्ति रखनी चाहिए।

भ्राता भगिन्याम् अभिलषति।

५…विश्वास के योग में जिस पर विश्वास किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।

छात्राः शिक्षके विश्वसन्ति। छात्र शिक्षक पर विस्वास करते हैं।

६..अनुरज्…अनुराग के योग में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे..

चन्द्रगुप्ते दृढ़म अनुरक्ता प्रकृतयः। चंद्रगुप्त के प्रति प्रजा का बड़ा अनुराग है।

७….जब किसी कार्य के हो जाने के बाद दूसरा कार्य होता है तो पहले हो चुके कार्य में सप्तमी होती है। जैसे..

सूर्ये अस्तं गते गोपाः गृहम् अगच्छन्।.. सूर्य के अस्त हो जाने पर ग्वाले अपने घर चले गये। यहां सूर्य के अस्त होने के बाद ग्वाले घर गए ,अतः सूर्य में सप्तमी हुई।

रामे वनं गते दशरथः प्रणान् तत्याज। राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राण त्याग दिया।

सुरेशे गायति सर्वे जहसुः। सुरेश के गाने पर सभी हंस पड़े।

ये कुछ उपपद विभक्ति के नियम और उनका प्रयोग है। जिसे समझाने का प्रयत्न किया गया है । अपेक्षा है, आपको स्पष्ट हुआ होगा।

इति उपपद विभक्ति वर्णन ।

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