कारक और विभक्ति क्या हैं?इन दोनो का क्या सम्बंध है. ये कैसे प्रयोग किए जाते हैं.. यह सब हम इस आर्टिकल के द्वारा जानेंगे…
कारक से अभिप्राय है ऐसे शब्द जिनका क्रिया के संपादन में उपयोग हो। अर्थात क्रिया को करने वाला। जिन शब्दों का क्रिया से सीधा सम्बन्ध होता है उन शब्दों को कारक कहते हैं।
कारक किसे कहते हैं।
.कारकों के व्यवहार में विभक्तियां आती हैं
विभक्ति शब्द ………………….. वि उपसर्ग + भज् धातु + क्तिन् प्रत्यय से बना है,जिसका अभिप्राय है,विभक्त या विभाजित होने की क्रिया या भाव।
जिस प्रकार विद्यालय में छात्रो को उनकी आयु व योग्यता के अनुसार विभिन्न कक्षा या वर्गों मे विभाजित कर के रखा जाता है,उसी प्रकार संज्ञा सर्व नाम आदि शब्दों में सुप् आदि प्रत्यय लगने के बाद उनका जो रूप निर्मित होता है वे प्रथमा द्वितीया तृतीया आदि विभक्तियों मे विभक्त हो जाती हैं।
विभक्ति की परिभाषा….
क्रिया के साथ संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का संबंध प्रकट करने के लिये जिन प्रत्ययों का ( हिंदी में चिन्हों ) का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ही विभक्ति कहते हैं।”
हिंदी भाषा में कर्ता , कर्म , करण आदि कारक दिखाने के लिए ने, को , से ,के द्वारा आदि शब्दों को संज्ञा या सर्वनाम के आगे जोड़ दिया जाता है। जैसे .. प्रकाश ने , विकास को , आंख से आदि ।
परंतु संस्कृत भाषा में यह संबंध दिखाने के लिए संज्ञा या सर्वनाम शब्द का रुप ही परिवर्तित हो जाता है।
जैसे ” प्रकाश ने ” इसके स्थान पर प्रकाशः , विकास को .. विकासम् , आंख से.. नेत्रेण गोविंद का .. गोविंदस्य आदि।और इस प्रकार एक शब्द के कई रुप हो जाते हैं, क्योंकि उनके के साथ विभक्तियां जुड़ जाती हैं।
इन विभक्तियों के तीन वचनों ..( एक वचन, द्विवचन,बहुवचन )में रूप बनते हैं।तीनो वचनों में भिन्न भिन्न प्रत्यय लगते हैं इनके नाम सुप् हैं।ये संख्या में 21 हैं।
विभक्तियां दो प्रकार की होती हैं…
१. कारक विभक्ति .. जो विभक्ति क्रिया के चिह्न के आधार पर संज्ञा आदि शब्दों में लगती है तथा जिसमें सामान्य नियम लगते हैं. उसे कारक विभक्ति कहते हैं।
२. उपपद विभक्ति.. जब वाक्य में क्रिया के आधार पर विभक्ति न लग कर किसी विशेष शब्दों के कारण विभक्ति आती है तो उसे उपपद विभक्ति कहते है।
विशेष.. क्योंकि “क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को कारक कहते हैं ” इसलिए संस्कृत भाषा में संबंध और संबोधन को कारक नहीं माना जाता है।
जैसे.. श्री कृष्ण ने कुंती के पुत्र अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया। इस वाक्य में कुंती का संबंध अर्जुन से है ,पर ज्ञान दिया से कुंती का कोई संबंध नहीं है।अतः यह कारक नहीं है।
इसी प्रकार संबोधन में भी प्रथमा विभक्ति आने से उसे अलग से कारक नहीं माना जाता है।
जैसे… हे मोहन!! त्वं कमलम आनय। इस वाक्य में मोहन का आनय क्रिया से कोई संबंध नहीं है बल्कि त्वं से संबंध है, इसलिए मध्यम पुरुष की क्रिया बनी। अन्यथा प्रथम पुरूष की क्रिया ‘आनयतु ‘ बनती ।
कारक और विभक्ति तालिका…
1 | कर्ता कारक | प्रथमा विभक्ति |
2 | कर्म कारक | द्वितीया विभक्ति |
3 | करण कारक | तृतीया विभक्ति |
4 | संप्रदान कारक | चतुर्थी विभक्ति |
5 | अपादान कारक | पंचमी विभक्ति |
6 | सम्बंध | षष्ठी विभक्ति |
7 | अधिकरण | सप्तमी विभक्ति |
सम्बोधन |
१..कर्ता कारक.. प्रथमा विभक्ति.
क्रिया को करने वाला कर्ता होता है।कर्ता कारक में सदैव प्रथमा विभक्ति होती है। प्रथमा विभक्ति का प्रयोग निम्नलिखित स्थानों पर होता है।
सूत्र.. प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रेप्रथमा..
1..प्रतिपादिक.. अर्थात किसी शब्द का अर्थ बताने के लिए किया जाता है .. जैसे कृष्णः.. कृष्ण,मोहनः… मोहन, ज्ञानम्…ज्ञान आदि।
संस्कृत भाषा के नियम के अनुसार केवल राम का उच्चारण करने पर वह निरर्थक होता है। परन्तु विभक्ति लगा कर रामः कहने पर राम के अर्थ का बोध होता है।
2.. लिङ्ग बताने के लिये.. जैसे बालकः बालिका तटः तटी शुक्लं फलम्।
३..परिमाण अर्थात नाप तौल बताने के लिए जैसे द्रोणो बृहिः.. टोकरी भर चावल।
४..वचन का ज्ञान कराने के के लिये.. जैसे..
एक वचन … रामः एक राम
द्वि.वचन….. बालकौ दो बालक
बहु वचन … कन्याः बहुत सारी कन्याएं
कर्तृ वाच्य के कर्ता में सदा प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है… जैसे…
१..रामः गच्छति । राम जाता है। यहां राम कर्ता है अतः रामः में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
अन्य उदाहरण…
2..दिनेशः पुस्तकम् पठति। दिनेश पुस्तक पढ़ता है
3.. शिक्षकः पाठयति। शिक्षक पढ़ाते हैं।
५..कर्म वाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे .. रामेण ग्रन्थः पठ्यते।
राम से ग्रन्थ पढ़ा जाता है।
मया गृहम् गम्यते।
मेरे द्वारा घर जाया जाता है।
६..अव्यय के साथ किसी के नाम बताने के लिये भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है।जैसे.. महात्मा गांधी ‘ बापू ‘ इति प्रसिद्धः अस्ति।
२.. कर्म कारक..द्वितीया विभक्ति ..
सूत्र.. कर्तुरीप्सिततम् कर्म। कर्मणि द्वितीया।
अर्थात कर्ता जिसको बहुत अधिक चाहता है,उसे कर्म कहते हैं,तथा कर्म को बताने के लिये द्वितीया विभक्ति होती है
जैसे.. रामः फलम् खादति। राम फल खाता है।
इस वाक्य में रामः कर्ता है, फलम् कर्म है, खादति क्रिया है। अतः फलम् में द्वितीया विभक्ति हुई।
महेशः पुस्तकम् पठति। महेश पुस्तक पढ़ता है।
सः आपणं गच्छति। वह बाजार जाता है।
वाक्य में जिसके ऊपर क्रिया के व्यापार का असर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।जैसे.
अहम् मोहनं पश्यामि।मै मोहन को देखता हूं। इस वाक्य में देखने के कार्य का फल मोहन पर पड़ रहा है, अतः मोहनम् मे द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हुआ।
गम् पठ् चल् जि तृ, भज्, खाद्, पा आदि धातुओं से बनी क्रियाओं के होने पर कर्म के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे…
वयं ईश्वरम् भजामः। हम सब ईश्वर को भजते हैं।
कविता रामायणं पठति। कविता रामायण पढ़ती है।
सा गृहम् गच्छति। वह घर जाती है।
भक्तो हरिम् भजति। भक्त हरि को भजता है।
शिशुः दुग्धम् पिबति। शिशु दुग्ध पीता है।
संस्कृत में ऐसी 16 धातुएं हैं जो द्विकर्मक अर्थात जिनके साथ दो कर्मो का प्रयोग होता है। उन दो कर्म मे से एक मुख्य कर्म और दूसरा गौड़ होता है।
जैसे. “मोहनः पितरं धनम् याचते।” इस वाक्य में पितरं और धनम् दो कर्म हैं।मोहन पिता से धन मांगता है। यहां याच् धातु होने के कारण पितरं और धनम् दो कर्म हुए तथा दोनो में यहां , द्वितीया विभक्ति हुई।
जबकि मांगने के कारण धन में द्वितीया और पिता में पंचमी विभक्ति होनी चहिये।यहां मुख्य कर्म धनम् है, गौण कर्म पितरम् है । ये १६ धातुएं निम्नलिखित हैं…
दुह् याच् पच् दण्ड्, रुध्, पृच्छ्, चि,ब्रू शास् जि मथ् मुष् नी हृ कृष् वह्।
दुह्.. ( दुहना ) कृष्णः धेनुम् दुग्धम् दोग्धि । कृष्ण गाय से दूध दुहता है।
याच्.. ( मांगना )बालकः जनकं मोदकं याचते। बालक पिता जी से लड्डू मांगता है।
पच् ( पकाना ) अहम् तण्डुलान् ओदनम् पचामि।
दण्ड..( दण्ड देना या जुर्माना करना) न्ययाधीश: चोरम् सहस्रं दण्डयति। जज चोर को हजार रुपये का दण्ड देता है।
रुध्.. ( घेरना या रोकना)सः धेनुम् ब्रजं अवरुणद्धि।
पृच्छ्.. ( पूछना)शिक्षकः छात्रम् प्रश्नम् पृच्छति। शिक्षक छात्र से प्रश्न पूछते हैं।
चि.. ( चयन करना , इकट्ठा करना या बटोरना ) सः पादपं पुष्पाणि अवचिनोति। वह पेड़ से फूल इकठ्ठा करता है।
ब्रू.. ( बोलना या कहना)आचार्यः शिष्यं धर्मं ब्रूते। आचार्य शिष्य को धर्म का उपदेश देते हैं।
शास्.. ( शासन करना , कहना ) गुरुः शिष्यं धर्मं शास्ति। गुरु शिष्य को धर्म बताते हैं।
ईश्वर : आदिऋषीन वेदान् शास्ति।
जि. ( जीतना).देवदत्तः कृष्णदत्तं शतं जयति।
मथ्.. ( मथना)सीता दुग्धम् नवनीतं मथ्नाति।
मुष्.. ( चुराना )चौरः रमेशम धनं मुष्णाति।
सः देवदत्तः शतं मुष्णाति।
नी… ( ले जाना ) सः ग्रामं अजाम् नयति।
हृ… ( हरण करना, चुराना ) चौरा: रामं धनम् हरन्ति।
कृष्…( खोद कर निकालना )जनाः भूमिं रत्नानि कर्षन्ति।
वह् ( ढो कर ले जाना ) भृत्यः ग्रामं भारं वहति।
३.. करण कारक..तृतीया विभक्ति…
जिसकी सहायता से कर्ता अपना कार्य पूर्ण करता है उसे करण कारक कहते हैं तथा करण कारक के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे मोहनः कलमेन् पत्रम् लिखति। इस वाक्य में मोहन कलम की सहायता से पत्र लिख रहा है अतः कलमेन् में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है।
सः नेत्राभ्यां पश्यति। वह आंखों से देखता है।
रामः बाणेन रावणं अहनत्। राम ने रावण को बाण से मारा। ( बाण सहायक है )
कमला यानेन गच्छति। कमला गाड़ी से जाती है।
सः दण्डेन ताडयति। वह डंडे से मारता है।
अहम् सायं कन्दुकेन् क्रीडामि। मैं शाम को गेंद से खेलता हूं।
विद्ययाः कीर्तिः प्राप्यते। विद्या से कीर्ति प्राप्त होती है।
कर्म वाच्य तथा भाव वाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।
- कर्म वाच्य के कर्ता में तृतीया…
जैसे..तया पुस्तकम् पठ्यते ।
रामेण् हतो बाली ।
श्यामेन ग्रन्थः लिख्यते।
- भाव वाच्य के कर्ता में तृतीया…
बालिकया सुप्यते । तेन गीयते /गम्यते।
कारक और विभक्ति…
४.. संप्रदान कारक..चतुर्थी विभक्ति
कर्ता जिसके लिए कुछ करता है,या किसी को कुछ देता है उसमें संप्रदान कारक होता है और संप्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।
जैसे..राजा विप्राय धनम् ददाति। राजा ब्राह्मण को धन देता है। इस वाक्य में राजा विप्र को धन देने का कार्य करता है अतः विप्राय में चतुर्थी विभक्ति हुई।
सः पठनाय विद्यालयम् गच्छति। वह पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है।
माता पुत्राय भोजनम आनयति। माता पुत्र के लिए भोजन लाती है।
बालकः क्रीडनाय गच्छति। बालक खेलने के लिए जाता है।
सः जलाय कूपं खनति। वह पानी के लिए कुआं खोदता है।
५..अपादान कारक..पंचमी विभक्ति…
जिससे प्रत्यक्ष या कल्पित रूप से कोई वस्तु अलग होती है उसमे अपादान कारक होता है और अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है।
- अलग होने में जो कुछ अलग होता है उसमे अपादन नहीं होता ,बल्कि जो स्थिर रहता है उसमे अपादान कारक होता है।
जैसे.. वृक्षात् पर्णानि पतन्ति। वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। वृक्ष से पत्ता अलग हुआ अतः वृक्ष में अपादान हुआ।
रमेशः गृहात् आगच्छति।
कमला कूपात् जलं आनयति।
गृहात् बहिः कूपः अस्ति।
हिमालयात् गंगा प्रभवति।
वृक्षात् फलानि पतन्ति।
षष्ठी विभक्ति…
वाक्य में स्थित शब्दों का एक दूसरे से संबन्ध बताने के लिये षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे..रामः दशरथस्य पुत्रः आसीत्।
उद्यानस्य शोभां पश्य।
रामायणस्य कथाम् श्रुत्वा मानसं प्रसन्नम् भवति।
सः तस्य भ्राता अस्ति।
एषा स्वर्णस्य मुद्रिका अस्ति।
नृपस्य पुत्रः विद्वान् न आसीत्।
कालिदासस्य सदृशः कोsपि कविः नास्ति। कालिदास के समान कोई कवि नहीं है।
कालीदासस्य उपमा अति प्रसिद्धः। कालीदास की उपमा अति प्रसिद्ध हैं।
गंगायाः जलं पवित्रं भवति।गंगा का जल पवित्र होता है।
मृत्तिकायाः घटः….मिट्टी का घड़ा
बालकस्य माता …. बालक की माता
सप्तमी विभक्ति…अधिकरण कारक…
क्रिया के आधार ( होने के स्थान )को अधिकरण कहते हैं। अर्थात जिस स्थान या वस्तु पर कोई कार्य होता है उसे अधिकरण कहते हैं,और उस अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।
जैसे..बालकः विद्यालये पठति। बालक विद्यालय में पढ़ता है। यहां पढ़ने का कार्य विद्यालय में हो रहा है। अतः विद्यालय में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
वृक्षे खगाः कलरवं कुर्वन्ति। वृक्ष पर पक्षी चहचहाते हैं।
कूपे जलं अस्ति। कुएं में जल है
छात्रेषु अभयः पटुः। छात्रों में अभय निपुण है।
सः शय्यां शेते। वह शैय्या पर सोता है।
बालकाः क्रीडाक्षेत्रे क्रीडन्ति। बालक खेल के मैदान में खलते हैं।
मुनिः वने निवसति। मुनि वन में निवास करते हैं।
अस्माकं विद्यालये वर्षिकोत्सवः अस्ति। हमारे विद्यालय में वार्षिकोत्सव है।
सरोवरे मीनाः सन्ति। तालाब में मछलियां हैं।
आकाशे खगाः उड्डयन्ति। आकाश में पक्षी उड़ते हैं।
आशा है कि उपरोक्त परिभाषा और उदाहरणों के द्वारा कारक और विभक्ति क्या है यह स्पष्ट हो गया होगा ।
उपपद विभक्ति के लिए इसे पढ़िए..