व्यञ्जन संधि व उसके भेद/ vyanjan sandhi v uske bhed…

व्यञ्जन संधि किसे कहते हैं? व्यञ्जन संधि के कितने भेद हैं?

व्यंजन संधि

व्यञ्जन संधि को हल् संधि भी कहते हैं।

व्यञ्जन संधि की परिभाषा..

व्यञ्जन के साथ व्यंजन का या स्वर का मेल होने पर जो परिवर्तन होता है,उसे व्यंजन संधि कहते हैं।..

उत् + चारणं = उच्चारणं

जगत् + ईश = जगदीश

प्रथम पद के अंतिम व्यंजन वर्ण तथा द्वितीय पद के आदि के स्वर या व्यंजन वर्ण के मेल से हुआ यह परिवर्तन बहुधा प्रथम पद के अंतिम व्यंजन वर्ण में ही प्रमुख रूप से होता है। दूसरे पद के आदि वर्ण में अपेक्षाकृत कम होता है।

व्यञ्जन संधि के भेद या प्रकार…..

श्चुत्व संधि .. सूत्र..”स्तोः श्चुनाश्चुः “

यदि प्रथम पद के अन्त में सकार – ‘स’ या तवर्ग के पहले या बाद मे शकार -‘श ‘ या चवर्ग आये तो को श तथा तवर्ग को चवर्ग हो जाता है।

अर्थात प्रथम पद के अन्त मे स् हो या त, थ्, द्, ध्, न् में से कोई वर्ण हो तथा दूसरे पद मे हो या च, छ, ज, झ, ञ मे से कोई एक हो तो ‘स् ‘को ‘ श ‘ तथा तवर्ग को चवर्ग हो जाता है।

स् =श्त =च्
थ् =छ्द् =ज्
ध् =झ्न् =ञ

जैसे….

विद्वान् + जय = विद्वाञ्जय..न् तवर्ग का पांचवां वर्ण है, अतः इसके स्थान पर चवर्ग का पांचवां वर्ण ञ हुआ।

अन्य उदाहरण…

स् को श्निस् +शब्द =निश्शब्द्दुस् + चरित्र =दुश्चरित्र
कस् +चित् =कश्चित्देवस् + शेते =देवश्शेते
रामस् + च =रामश्चमनस् + शान्तिः = मनश्शान्तिः
त् को च्सत् + चित् =सच्चित्तत् +चक्रम् =तच्चक्रम्
त् को च्उत् +चारण =उच्चारणमहत् +चित्रम् =महच्चित्रम्
द् को ज्उद् +ज्वल =उज्ज्वलमहान् + जयः =महाञ्जयः
तत् +जयः =तज्जयः तत् + छत्रम् =तच्छत्रम्

स्वर संधि

ष्टुत्व संधि.. सूत्र..”ष्टुनाष्टुः”

स् या तवर्ग के बाद या पहले , ष् या टवर्ग के वर्ण आएं तो स् को ष् तथा तवर्ग के वर्ण को टवर्ग का वर्ण हो जाता है।जैसे…

पेष् + ता =पेष्टा इस पद मे ष् के बाद तवर्ग का त् आया है इसलिये त को हुआ।

स् को ष्धनुस् + टंकार =धनुष्टंकाररमस् + टीकते =रमष्टीकते
त् को ड्उत् + डीन =उड्डीनसत् +टीका =सट्टीका
मत् + डमरु =मड्डमरु
त् को ट्आकृष् +तः =आकृष्टःराष् + त्रम् =राष्ट्रम्
द्रष् +तः =द्रष्टः
 इष् + तः = इष्टः हृष् +त =हृष्ट
 षष् +तः = षष्टः 
न् को ण्विष् +नुः =विष्णुः

इस संधि मे भी तवर्ग का जो वर्ण जिस क्रम मे होगा, उसके स्थान पर टवर्ग का उसी क्रम का वर्ण परिवर्तित होगा। जैसे…त् को ट्, न् को ण्।

व्यञ्जन सन्धि पदान्त जश्त्व संधि.

सूत्र…”झलां जशोअन्ते “

यदि प्रथम पद के अन्त मे किसी भी वर्ग का पहला या दूसरा, या तीसरा, या चौथा वर्ण आए और दूसरे पद के आदि में कोइ भी वर्ण आये, तो प्रथम पद के अन्तिम वर्ण को उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।उदाहरण…

अच् + अन्तः = अजन्तः मे च् को,चवर्ग वर्ग का तीसरा वर्ण, ज् हुआ।

ज्, ब्, ग, ड्, ड्, को जश् कहते हैं । ये प्रत्येक वर्ग के तीसरे वर्ण हैं।

क् को ग्वाक्+ईशः =वागीशः दिक् + गज् =दिग्गज
वाक् + दानम् =वाक्दानम्दिक् +अम्बर =दिगम्बर
वाक् + जालम् =वाग्जालम्वाक् +वज्र=वाग्वज्र
त् को द्जगत् +ईशः =जगदीशः तत् +अपि =तदपि
सत् +आचार =सदाचारजगत् + बन्धु =जगदबन्धु
चित् +आनन्द =चिदानन्दमहत् + धनम् = महद्धनम्
प् को ब्अप् +जः =अब्जःसुप् +अन्तः = सुबन्तः 
च् को ज् अच् +अन्तः =अजन्तः 
ट् को ड् षट् +आनन =षडानन षट् + देवा =षड्देवा

अपदान्त जश्त्व संधि..

सूत्र… “झलां जश् झशि “

यदि किसीभी वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय,चतुर्थ वर्ण या श,ष्, स्, ह् के पश्चात किसी भी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये तो प्रथम पद का वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है।

क्षुभ् +ध =क्षुब्धभ् को ब् हुआ
दिक् +गज =दिग्गजक् को ग् हुआ
बुध् +धि =बुद्धिध् को द् हुआ
लभ् +धम् =लब्धम्भ् को ब् हुआ
श्रत् +धा =श्रद्धात् को द् हुआ
शुध् +धि =शुद्धिध् को द् हुआ
क्रुध् +धः =क्रुद्धःध् को द्
श्रत् + धा =श्रद्धात् को द्
उत् + घोष =उद्घोष

विशेष… दोनो जश्त्व संधि मे छोटा सा अन्तर है, कि पहली संधि पदान्त की है, दूसरी जश्त्व संधि पद के मध्य की है।

चर्त्व संधि

सूत्र.”खरि च “

किसी भी वर्ग केपहले, दूसरे, तीसरे, व चौथे वर्ण के बाद, यदि दूसरे पद के आरम्भ मे किसी भी वर्ग का पहला दूसरा वर्ण या श् ष् स , आये तो प्रथम पद का अन्तिम वाला वर्ण, अपने वर्ग के प्रथम वर्ण मे परिवर्तित हो जाता है। जैसे…

उद् + कीर्णः = उत्कीर्णः यहां द् वर्ण तवर्ग का तृतीय वर्ण है, तवर्ग के प्रथम वर्ण त् मे परिवर्तित हो गया।

उदाहरण….

शरद् +काल =शरत्कालद् को त्
लभ् +स्यते =लप्स्यतेभ् को प्
युध् +सु =युत्सुध् को त्
उद् +पन्न =उत्पन्नद् को त्
तद् +परः =तत्परः
उद् +साह =उत्साह
सद् + कार =सत्कार
भेद् + ता =भेत्ता
विपद् +सु =विपत्सु

व्यञ्जन संधि अनुस्वार संधि..

सूत्र.. “मोऽनुस्वारः

प्रथम पद के अन्त मे यदि म् हो तथा द्वितीय पद का पहला वर्ण कोई अन्य व्यञ्जन हो, तो म् को अनुस्वार ( ं ) हो जाता है।

म् का संक्षिप्त उच्चारण अनुस्वार कहा जाता है। अनुस्वार को वर्ण के ऊपर ( ं ) बिन्दी के रूपमे प्रकट किया जाता है।

हरिम् + वन्दे =हरिंवन्दे
कार्यम् + कुरु =कर्यंकुरु
चित्रम् +दृष्ट्वा =चित्रंदृष्ट्वा
सत्यम् +वद = सत्यंवद
पाठम् + पठति =पाठंपठति
शिवम् + नमामि = शिवंनमामि
गुरुम् + नमति = गुरुं नमति
कथाम् + कथय =कथां कथय
एवम् + च = एवं च
कृष्णम् +वन्दे = कृष्णं वन्दे

यदि म् के बाद कोई स्वर हो, तो म् को अनुस्वार नहीं होगा ..

जैसे.. फलम् + आनय = फलमानय

म् यदि व्यञ्जन से पहले है, तो वह अनुस्वार में बदलता है, स्वर से पहले हो तो, अनुस्वार में नहीं बदलता है।

अनुनासिक संधि….

सूत्र. “यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा “

प्रथम पद के अन्त मे किसी भी वर्ग का कोई भी वर्ण हो(ह् को छोड़ कर )और द्वितीय पद का पहला वर्ण कोई अनुनासिक (ञ म् न ण् ङ् ) हो ,तो प्रथम पद का अंतिम वर्ण उसी वर्ग का पांचवां वर्ण हो जाता है। अर्थात प्रथम पद का अंतिम वर्ण यदि च् है, तो वह ञ हो जाता है।

दिक् + नाथ =दिङ्ग्नाथ क को ङ्
वाक् + मयम् = वाङ्ग्मयम्
जगत् + नाथ =जगन्नाथत को न
उत् + मत्तम् =उन्मत्तम्
सत् + मतिं = सन्मतिम्
षट् + नवति = षण्णवतिट् को ण्

व्यञ्जन संधि परसवर्ण संधि..

सूत्र.. “अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः “…

यदि प्रथम पद के मध्य मे स्थित अनुस्वार के बाद,श् ष्, स् और ह् को छोड़ कर कोई भी वर्ण आए ,तो अनुस्वार के स्थान पर सदा उस वर्ग का पांचवां वर्ण हो जाता है, जिस वर्ग का व्यंजन अनुस्वार के बाद दूसरे पद के आदि में रहता है।

गम् + ता = गन्ता… इस मे प्रथम् पद गम् के अन्त मे अनुस्वार म् है, तथा दूसरे पद के आदि मे ता (त् +आ ) व्यञ्जन है। तवर्ग का पांचवां वर्ण है। अतः संधि होने के पश्चात म् वर्ण न्, हो जायेगा।

अं + कितः =अङ्कितः
चं + चल =चञ्चल
घं + टा =घण्टा
चं + दनम् =चन्दनम्
भयं + कर =भयङ्कर
वृक्षं + परितः =वृक्षं परितः
रिपुं + जयति =रिपुञ्जयति
सं + जातम् =सञ्जातं
अलं + करोति =अलङ्करोति
शाम् +तः = शान्तः
भोजनं + करोति =भोजनंकरोति
हलं + चालयाति = हलञ्चलयति

यदि अनुस्वार के बाद अवर्गीय वर्ण है, तो अनुस्वार वैसे ही रहता है, अर्थात उसमे कोई परिवर्तन नहीं होता है।

अपदान्त या पद के मध्य में अनुस्वार….

सूत्र….नश्चापदान्तस्य झलि….

पद के मध्य में आये हुए न् और म् के बाद, (अनुनासिक तथा अन्तस्थ् को छोड़ कर) कोई भी वर्ण आए तो न् और म् को अनुस्वार हो जाता है।

यशान् +सि =यशांसिन् को अनुस्वार
पयान् + सि =पयांसि
आक्रम् + स्यते =आक्रंस्यतेम् को अनुस्वार
गम् + स्यते = गंस्यते
दम् + पती =दंपती
मन् + स्यते =मंस्यतेन् को अनुस्वार

लत्व संधि. सूत्र..” तोर्लिः “

यदि प्रथम पद मे र्ग का ( त् थ्, द्, ध्, न् )कोई व्यञ्जन आये,तथा द्वितीय पद के आरम्भ मे आये, तो ‘ तवर्ग के स्थान पर हो जाता है।

उत् +लेख =उल्लेखउत् + लास =उल्लास
तत् + लीन =तल्लीनतत् +लय =तल्लय

छत्व संधि..

सूत्र…, ” शश्छोऽटि”

यदि प्रथम पद के अन्त में, वर्ग का पहला, दूसरा, तीसरा, या चौथा वर्ण मे से कोई वर्ण हो, उसके बाद श् हो तथा श् के बाद य, र, ल, व, ह् में से कोई वर्ण या कोई स्वर , या कोई अनुनासिक वर्ण हो तो श् को विकल्प से छ् हो जाता है।

विकल्प से छ् अर्थात यहां स्तोः श्चुनश्चुः नियम भी यहां पर लगाया जा सकता है।जिसके अनुसार छ् न हो कर श् भी हो सकता है।

तत् +शिवः =तच्छिवह्
तद् + श्लोकेन = तच्छ्लोकेन
सत् +शीलः =सच्छील:
उत् +शाय: =उच्छाय:
उत् + श्वासः =उच्छ्वासः
तत् + श्रुत्वा =तच्छ्रुत्वा
मत् + शत्रु =मच्छत्रु

व्यञ्जन संधि में नये वर्ण का आ जाना…

तुगागम संधि… (च् वर्ण का आगम )

यदि प्रथम पद का अन्तिम वर्ण ह्रस्व स्वर है, और उसके बाद छ् वर्ण हो अर्थात दूसरे पद का पहला वर्ण छ् हो, संधि करने पर छ् वर्ण के पहले च् वर्ण आ जाता है, अर्थात एक और वर्ण च् आ जाता है। जैसे….

परि + छेद =परिच्छेद…. यहां परि का अन्तिम वर्ण है, उसके बाद छ है, अतः एक और च् का आगम हुआ।

वृक्ष + छाया =वृक्षच्छाया
अ + छ्
स्व + छः =स्वच्छ:
अनु + छेद =अनुच्छेदवट+ छाया = वटच्छाया
वि + छेद= विच्छेद्स्व + छन्द =स्वच्छन्द

किन्तु यदि दीर्घ स्वर के बाद छ् आता है, तो,च् का आगम विकल्प से होत है। अर्थात आप चाहें तो को लाएं या ना चाहें तो ना लाएं।

लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीछाया /लक्ष्मीच्छाया

णत्व विधान…अर्थात व्यञ्जन संधि में न को ण् होना

रषाभ्यां नो णः समान पदे

ऋ वर्णान्नस्य णत्वम् वाच्यम्

किसी एक ही पद में, र्, ष् और ऋ इन वर्णो के बाद यदि न् आये , तो को ण हो जाता है।

जीर् +=नम् = जीर्णंकर्तृ + ना =कर्तृणा
तृष् + ना = तृष्णाशूर्प् + नखा =शूर्पणखा
पूष् + ना =पूष्णापितृ + नाम =पितृणाम्

यदि र्, ष्, तथा ऋ और न के मध्य कोई स्वर, कवर्ग (क ख, ग, घ, )पवर्ग ( प्, फ, ब्, भ, म ) य, व, र्, ह्, अनुस्वार भी हो, तो भी ‘न ‘ को ‘ ण’ हो जाता है। जैसे… परि + नाम = परिणाम इसमे र् और न, दोनो के मध्य ‘ इ’ है,।

रामे + न = रामेण…. यहां र् और म् के बीच मे क्रमशः…आ, पवर्ग का म तथा ए है।

रौ +अन =रावण… यहां पर र् और न् के बीच मे औ तथा अ है। न को ण हुआ।

अन्य उदाहरण…

मित्रा + नि =मित्राणिद्रव्ये + न= द्रव्येण
मृगे + न =मृगेणशीर्षा + नि = शीर्षाणि

पदान्तस्य इस सूत्र के अनुसार जब न् किसी पद के अन्त में आता है, तो न् को ण् नहीं होता है। जैसे… रामान्, पितृन्, भ्रातृन्, रिपून् ।

उपरोक्त बताये गये व्यञ्जन संधि के नियम हैं।जिनको विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *