स्वर संधि परिभाषा.. भेद उदाहरण….

स्वर संधि परिभाषा तथा भेद…

स्वर संधि किसे कहते हैं? उससे पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि संधि किसे कहते हैं? संयोग किसे कहते हैं? संधि और संयोग में क्या अंतर है..

संधि की परिभाषा ..संधि का शाब्दिक अर्थ मेल होता है ,जो दो पक्षों के मध्य किसी नियम या शर्त के अंतर्गत होती है।

व्याकरण में यह संधि अत्यंत समीपस्थ दो वर्णों के मध्य होती है , दूरस्थ वर्णों में संधि नहीं होती है। यह संधि कुछ नियमों के अन्तर्गत होती है।

[ नोट..वर्णों के अत्यंत समीप होने को संहिता कहते हैं। सूत्र …” परः सन्निकर्षः संहिता “]

संधि की परिभाषा….

अत्यंत समीपवर्ती दो वर्णों के मेल को संधि कहते हैं।

वर्णों के अत्यंत निकट आने से उनमें संधि या मेल होता है,और इसके परिणाम स्वरूप कुछ परिवर्तन हो जाते हैं…

*कही पर दो वर्ण के स्थान पर एक ही वर्ण हो जाता है.. जैसे.. विद्या + आलय = विद्यालय

*किसी स्थान पर दो वर्णों के स्थान पर एक नया वर्ण बन जाता है… नर+इंद्र=नरेंद्र

*कहींपर किसी एक के स्थान पर नया वर्ण बन जाता है… इति+आदि= इत्यादि … इस शब्द में इ के स्थान पर य् नया वर्ण बना।

*कही पर प्रथम पद के अंतिम अक्षर का लोप हो जाता है… नरः आयाति = नर आयाति । .. विसर्ग का लोप

*कहीं दूसरे शब्द के प्रथम अक्षर का लोप हो जाता है….

रामः अस्ति= रामोsस्ति

*कहीं पर पूर्व पद का अंतिम वर्ण उत्तर पद के समान हो जाता है… प्र+एषते = प्रेषते

( प्र का अ,ए में परिवर्तन )

*किसी स्थान पर दो वर्णों के मध्य एक नया वर्ण आगम हो जाता है …विष्णु+छाया= विष्णुच्छाया । ( च् का आगम )

तरु+छाया=तरुच्छाया

कहीं कहीं पर वर्णों का द्वित्व( दो वर्ण ) हो जाता है…

पठन् +अस्ति =पठन्नस्ति

एकस्मिन् +अवसरे =एकस्मिन्नवसरे

इस प्रकार के होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए कुछ नियम बनाए गए हैं, जिन्हे संधि के नियम कहा जाता है।

संधि और संयोग किसे कहते हैं …

संधि…

दो पदों में से प्रथम पद का अंतिम वर्ण तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण,जो अत्यंत समीप स्थित हैं, इनके मेल से , जो स्वर ,व्यंजन, विसर्ग आदि का परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं।

संयोग…

जब प्रथम पद का अंतिम वर्ण तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण दोनो हल् / व्यञ्जन हो , कोई स्वर वर्ण ना हो,तो उनके मेल को संयोग कहते हैं। जैसे….वृत् +त =वृत्त

शक् +त =शक्त

दिक् + करी =दिक्करी

संधि के प्रकार या भेद

संधि के तीन भेद हैं…

१… स्वर संधि

२… व्यंजन संधि

३… विस.र्ग संधि

स्वर संधि .. परिभाषा

स्वर से स्वर के मेल को स्वर संधि कहते हैं। अर्थात यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण स्वर हो तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण भी स्वर हो ,तो दोनो के मेल को स्वर संधि कहते हैं ।

स्वर संधि को अच् संधि भी कहते हैं।

जैसे … देव + आनंद = देवानंद

विद्या + आलय = विद्यालय

गिरि + ईश =गिरीश

सदा + एव =सदैव

इति + आदि = इत्यादि

स्वर संधि के भेद या प्रकार….

१..दीर्घ स्वर संधि

२..गुण स्वर संधि

३..यण् स्वर संधि

४..वृद्धि स्वर संधि

५..अयादि स्वर संधि

६..पूर्व रूप संधि

७..पर रूप संधि

दीर्घ स्वर संधि…

सूत्र… “अकः सवर्णे दीर्घः ”

पहले शब्द के अन्त में यदि अक् अर्थात ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ, लृ के पश्चात दूसरे शब्द के आदि (start) में ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ ऋ, लृ आये तो दोनो के स्थान पर सवर्ण दीर्घ बन जाता है।

सवर्ण अर्थात समान … अ का सवर्ण अ, ई का सवर्ण ई है… इसी प्रकार अन्य भी हैं।

आ/अ+अ/आ=आ। इ/ई+इ/ई=ई
ऊ/उ+ऊ/उ=ऊए/ऐ+ऐ/ए=ऐ
ऋ/ऋ +ऋ /ऋ =ऋ

दीर्घ स्वर संधि के उदाहरण…

भाव + अर्थ= भावार्थधर्म+अर्थम् = धर्मार्थम्
चर +अचर =चराचरमृग+अंक=मृगांक
विधवा+आश्रम=विधावश्रमविद्या +आलय = विद्यालय
दया+आनन्द=दयानन्दशिक्षा+आलय=शिक्षालय
मुनि +इन्द्र =मुनीन्द्रअभि +इष्ट =अभीष्ट
लक्ष्मी +ईश्वर् =लक्ष्मीश्वरश्री +ईशः =श्रीशः
भानु +उदय =भानूदयभानु +उर्जा =भानूर्जा
भू + ऊर्ध्वम = भूर्ध्वम्वधू +उत्सव =वधूत्सव
होतृ +ऋकारः =होतृकारःपितृ +ऋणं =पितृणं
पितृ +ऋद्धिः = पितृद्धिःमातृ +ऋणं =मातृणम्

अक् अच्, आद् यण् आदि प्रत्याहार के लिये इसे पढ़िए ।

गुण स्वर संधि….

सूत्र..आद् गुणः .

अ या आ वर्ण के बाद यदि इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लृ में से कोई वर्ण आए, तो दोनो के स्थान पर क्रमशः.. ए, ओ,अर्, अल् हो जाता है।

अर्थात पहले पद के अन्त में अ या आ हो और दूसरे पद के आदि में ह्रस्व या दीर्घ इ उ ऋ लृ मे से कोई वर्ण हो तो उनके स्थान पर क्रमशः…

अ /आ + इ /ई = ए

अ /आ +उ /ऊ = ओ

अ /आ +ऋ /ऋ = अर्

अ /आ + लृ /लृ = अल्… हो जाता है।

गुण स्वर संधि के उदाहरण….

सुर +इन्द्र =सुरेन्द्रदेव+इच्छा =देवेच्छा
तथा +इति = तथेतिलता +इव =लतेव
तस्य +उपरि =तस्योपरिचन्द्र +उदय =चन्द्रोदय
विद्या +उपदेश =विद्योपदेश महा+ उत्सव =महोत्सव
देव +ऋषि =देवर्षिसप्त +ऋषि =सप्तर्षि
वर्षा +ऋतुः=
वर्षर्तुः
राजा +ऋषि: =
राजर्षिः
हिम + अर्तुः =हिमर्तुःकृष्ण +ऋद्धिः =कृष्णर्द्धिः
तव +लृकारः =तवल्लकारःमम +लृकारः =ममल्लकारः

वृद्धि स्वर संधि..

सूत्र…. वृद्धिरेचि..

यदि अ या आ वर्ण के बाद ए या ऐ आये तो दोनो के स्थान पर ऐ हो जाता है,

और यदि अ या आ के बाद ओ या औ आये तो दोनो के स्थान पर औ हो जाता है।

यदि अ या आ के बाद ऋ आये तो दोनो के स्थान पर आर् हो जाता है।

वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण…

अद्य +एव =अद्यैवअथ +एकदा =अथैकदा
एव +एष =एवैष
तथा +एव =तथैवसदा +एव =सदैव
गुण +ऐक्यम् =गुणैक्यम् इन्द्र +ऐरावतः =इन्द्रैरावतः
धारा +ऐक्यम् =धारैक्यंपरम +ऐश्वर्यम् =परमैश्वर्यम्
जल +ओघः =जलौघ:सूप +ओदनम् =सूपौदनं
रूप +ओष्ठः =रूपोष्ठःतण्डुल +ओदनम् =तन्डुलौदनं
महा +ओजस्वी =महौजस्वीयथा + औदार्यम् =यथौदार्यम्
महा +औषधिः =महौषधिःविद्या +ओजः =विद्यौजः
उप+ऋच्छति =उपार्च्छतिप्र +ऋणम् =प्रार्णम्
अव +ऋच्छति =अवार्च्छति

गुण संधि का अपवाद…कुछ स्थानों पर गुण संधि का नियम नहीं लग पाता है….जैसे…

सुख+ऋतः =सुखार्तः

अक्ष +ऊहनी =अक्षौहिणी

व्यंजन सन्धि

यण् स्वर संधि….

सूत्र…”इको यणचि “

यदि प्रथम पद के अन्त में ह्रस्व या दीर्घ इ, उ , ऋ, लृ मे से कोई स्वर हो तथा दूसरे पद के आदि मे कोई अन्य असमान स्वर अर्थात इ, उ ऋ, लृ से भिन्न स्वर आये, तो इ के स्थान पर य्, उ के स्थान पर व् , ऋ के स्थान पर र् तथा लृ के स्थान पर ल् हो जाता है…

इति +अपि =इत्यपियदि +अपि =यद्यपि
प्रति +अंग=प्रत्यंगअति +अन्त =अत्यन्त
सु +आगत =स्वागत
अनु +एषण =अन्वेषणअति+उत्तम =अत्युत्तम
चमू+आदेशः =चम्वादेशःवधू +आशयः =वध्वाशयः
मातृ +अन्शः =मात्रन्शःकर्तृ +अभिलाषा =कर्त्रभिलषा
पितृ +आज्ञा =पित्राज्ञापितृ +उपदेश =पित्रुपदेश
दातृ +ईशः =दात्रीश:धातृ +ओघः =धात्रोघः
लृ +आकारः =लाकारःलृ +आकृतिः =लाकृतिः

अयादि स्वर संधि

सूत्र एचोsअयवायावः

यदि प्रथम शब्द के अन्त में ए ऐ, ओ औ में से कोई स्वर हो ,तथा द्वितीय पद के आदि में कोई अन्य स्वर हो तो दोनो के स्थान पर क्रमशः अय, आय, अव, आव हो जाता है।

ए को अय.ने +अनम् =नयनम्चे +अनम् =चयनम्
मुने +ए =मुनयेशे +अनम् =शयनम्
ऐ को आयनै +अकः =नायकःग्लै +अति =ग्लायति
गै +अकः =गायकःरै +ओः =रायोः
ओ को अवभो +अनम् =भवनम्पो +अनम् =पवनम्
विष्णो +ए =विष्णवेगो +इ =गवि
साधो +इह =साधविहभो +अन =भवन
औ को आवपौ +अक =पावकनौ +इक =नाविक
द्वौ +अपि =द्वावपिनौ +आवा =नावा
भौ +उकः =भावुकःतौ +आगतः =तवागतः

पूर्वरूप संधि

एङ:पदान्तादति

यदि पदान्त के ए या ओ के बाद ह्रस्व अ आये तो का पूर्व रूप हो जाता है। अर्थात अ वर्ण प्रथम पद के अन्तिम वर्ण मे मिल जाता है, और उसके स्थान पर ‘ऽ’ का चिन्ह् लगा दिया जाता है

अन्ये +अपि =अन्येऽपिसर्वे +अत्र =सर्वेऽत्र
हरे +अत्र =हरेऽत्रवने +अस्मिन् =वनेऽस्मिन्
के +अपि =केऽपित्यागे +अपि =त्यागेऽपि
विष्णो +अवतु =विष्णोऽवतुविभो + अस्मान् =विभोऽस्मान
शिशो +अपि =शिशोऽपिसाधो +अत्र =साधोऽत्र
प्रभो +अनुग्रह =प्रभोऽनुग्रह

पर रूप संधि

सूत्र.., ” एङ्गि पररूपं

यदि अवर्णान्त उपसर्ग (प्र, अप, अव, उप )के बाद या ओ वर्ण से प्रारम्भ होने वाला कोई क्रिया पद रूप आये तो उपसर्ग का अन्तिम वर्ण अ का पररूप् हो जाता है। अर्थात प्रथम पद जो,उपसर्ग है, उसका अन्तिम वर्ण द्वितीय पद के वर्ण मे मिल जाता है।

प्र +एषते =प्रेषते

अ +ए =ए….. प्र उपसर्ग का अ वर्ण एषते के ए मे मिल गया है।

उप + ओषति =उपोषति

अ +ओ = ओ

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